SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० प्रवर्तिनी सिंहश्रीजी के साध्वी समुदाय का परिचय : साध्वी हेमप्रभाश्रीजी गच्छाधिपति सुखसागरजी म. के समुदाय में वर्तमान में साध्वियों की दो समृद्ध परम्परायें हैं जो पुण्यमण्डल और शिवमण्डल के नाम से प्रसिद्ध हैं। पुण्य-मण्डल की प्रमुखा हैं, पुण्यश्लोका पुण्यश्रीजी म० सा० एवं शिवमण्डल की नेत्री हैं, प० पू० स्वनामधन्या संयममूर्ति शिवश्रीजी म. सा० । दोनों का मूल एक ही है, दोनों ही प० पू० लक्ष्मीश्रीजी म. सा० की शिष्यायें हैं। शिष्या-प्रशिष्या का परिवार बढ़ने के साथ स्वाभाविक है कि दो गुरुबहिनों का विहार-प्रचार इत्यादि अलग-अलग दिशा में हो जाता है, किन्तु एक बात समझ नहीं आती कि ऐसी क्या आवश्यकता हुई, ऐसी कौन सी परिस्थितियाँ बनी कि सर्वोपरि अनुशासन एक होते हुए भी प्रवर्तिनी की व्यवस्था अलग-अलग की गई। प० पू० लक्ष्मीश्रीजी म. जैसी संयमनिष्ठ, जिनाज्ञासमर्पित गुरुवर्या के नेतृत्व में फलने-फूलने वाला अनुशासनप्रिय साध्वी-मण्डल में दो प्रवर्तिनियों की आवश्यकता किस कारण हुई, एकता के बँधे हुए साध्वी-मण्डल ने कालान्तर में अलगाव पैदा करने वाले इस निमित्त को क्यों स्वीकार किया। व्यवस्था और अनुशासन की दृष्टि से भी दो प्रवर्तिनी वाली बात का यहाँ कोई औचित्य नहीं लगता । कारण साध्वियों की संख्या इतनी अधिक थी ही नहीं। वर्तमान साध्वी-समुदाय का मूल प० पू० लक्ष्मी स्वरूपा लक्ष्मी श्रीजी म. सा. लक्ष्मीश्रीजी म. सा. वास्तव में गच्छ के लिए लक्ष्मीस्वरूपा सिद्ध हुईं। आपकी परमकृपा का सुपरिणाम है कि आज दोनों मण्डल सुयोग्य साध्वियों से समृद्ध हैं। आप फलौदी निवासी जीतमलजी गुलेछा की सुपुत्री थी । आपकी शादी उस समय के रिवाज के अनुसार छोटी उम्र में ही झाबक परिवार में हुई। जिनका जीवन मुक्त होने के लिए निर्मित हुआ वह कब बन्धन-बद्ध रह सकती थीं। कुछ समय बाद ही अचानक आपके पति की मुत्यु हो गई। छोटी उम्र, धर्मरुचि, पारिवारिक सुविधा ने आपको सत्सग से जोड़ दिया। प० पू० खरतरगणाधीश सुखसागरजी म. सा० के त्याग, वैराग्यपूर्ण प्रवचन एव प० पू० गुरुवर्या श्री उद्योतश्रीजी म. सा० की सत्प्रेरणा से आप विरक्ता बनी और वि० सं० १९२४ की मिगसर वदी १० को दीक्षा ग्रहण की । पू० गुरुदेव एवं गुरुवर्याश्री की निश्रा में शास्त्राध्ययन कर आपने विद्वत्ता प्राप्त की थी । आप विदुषी होने के साथ प्रखरव्याख्यात्री, तपस्विनी, संयम एवं प्रभावशालिनी थी। आपकी दो शिष्यायें थी १. प० पू० मगनश्री जी म. सा. २. शिवश्रीजी म. सा० । खरतरगच्छ में शिवमण्डल के नाम से प्रसिद्ध साध्वी मण्डल आपकी ही परम्परा में है। आदर्श त्यागप्रतिमा प० पू० सिहश्रीजी म.सा. आपका नाम शिवश्रीजी और सिंहश्रीजी दोनों मिलते हैं। आपके लिये दोनों ही नाम सार्थक हैं । आपका जीवन मोक्ष (शिव) की प्राप्ति के साधनभूत ज्ञान और क्रिया वस्तुतः उनके जीवन की अनुपम 'श्री' थे । साहसासिंह से कम नहीं था । अतः सिंहश्रीजी भी नाम सार्थक है । आपका जन्म वि.स. १६१२ में फलोदी में हुआ था। पिता का नाम लालचन्द्रजी और माता अमोलक देवी थी। अमोलक देवी की कुक्षि से यह अमोलक रत्न १९१२ में पैदा हुआ था। आपका नाम शेरू था। तभी तो छोटी उम्र में आये वैधव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy