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________________ ६० खरतरगच्छ के तीर्थ व जिनालय : श्री भंवरलाल नाहटा तथा सं० १४२७ में श्री जिनोदयसूरि द्वारा प्रतिष्ठोत्सव करवाया था। सं० १४३६ में यात्री संघ निकालने तथा मोहन के पुत्र कीहट द्वारा सं० १४४६ में शत्रुजय गिरनार तीर्थ का संघ निकालने का उल्लेख है। सं० १४५६ व सं० १४७३ की दो प्रशस्तियाँ लगी हैं जिसमें "खरतरप्रासाद चूड़ामणि" तथा वास्तुशास्त्र के अनुसार श्रीनन्दिवर्द्धमान प्रासाद नाम लिखा है। दूसरा मन्दिर श्रीसंभवनाथ भगवान् का सं० १४९४ में चोपड़ागोत्रीय सा० हेमराज पूना-दीतापांचा के पुत्र परिवार सहित बनवाकर सं०१४६७ में श्री जिनभद्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित कराया। इस अवसर पर ३०० जिनबिम्बों की अंजनशलाका हुई। यह जिनालय भी अत्यन्त सुन्दर कलापूर्ण है जिसके नीचे तलघर में विश्वविश्रु त ताड़पत्रीय ग्रन्थों का श्री जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार है । तीसरा अष्टापद प्रासाद व उसके ऊपर शान्तिनाथ जिनालय है । अष्टापद प्रासाद के मूलनायक कुन्थुनाथ स्वामी हैं । इन दोनों प्रासादों का चोपड़ा लाखण व संखवाल खेता ने मिलकर निर्माण कराया था । संखलाल खेता की मां गेली श्राविका चोपड़ा पांचा की पुत्री अर्थात् लाखण की बहिन थी। ऊपर वाले प्रासाद में ४५ पंक्तियों की महत्वपूर्ण प्रशस्ति उत्कीणित है जिसमें संखवाल परिवार के द्वारा सम्पन्न धर्मकार्यों का राजस्थानी भाषा में विशद् वर्णन है। यह प्रतिष्ठा सं० १५३६ में हुई थी। पार्श्वनाथ जिनालय से ऊपर पुल द्वारा मार्ग है, नीचे राजमार्ग है । इस पुल पर दशावतार सहित श्रीलक्ष्मीनारायणजी की मूर्ति गवाक्ष में विराजमान है। प्रशस्ति में निर्माता के धर्मकार्यों का इस प्रकार उल्लेख है (१) कोचरशाह ने कोरंटा और संखवाली गाँव में उत्तुंग तोरणयुक्त जिनालय बनवाये । आबू, जीरावला तीर्थ की संघ सहयात्रा की, अपना समस्त धन दान कर कर्ण विरुद पाया। (२) सं० आसराज ने शत्रुजय महातीर्थ का संघ निकाला । धर्मपत्नी गेली जो चोपड़ा पांचा की पुत्री थी, शत्रुजय, गिरनार, आबू तीर्थों की यात्रा की । शत्रुजय पट्ट, नेमिनाथ स्वामी का सतोरण बिंब कराके संभवनाथ जिनालय में स्थापित किया । तपापट्टिका बनवाई। (३) सं० खेता ने सं० १५११ में शत्रुजय गिरनार की संघ यात्रा प्रतिवर्ष करते हुए सं० १५२४ में तेरहवी यात्रा कर छहरी पालते हुए प्रभु पूजा की । छ? तपपूर्वक दो लाख नवकार का जाप किया, चतुर्विध संघ की भक्ति की । अपने मामा चोपड़ा लाखण के परिवार सह जैसलमेरगढ़ पर द्विभूमिक अष्टापद प्रासाद कराके सं० १५३६ फागुन सुदी ३ को जिनसमुद्रसूरिजी से प्रतिष्ठा करवायी । अनेक जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित कराईं। सारे मारवाड़ में समकित के लड्डू और रुपयों की प्रभावना की । स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र लिखवाये । शांतिसागरसूरि की पद स्थापना कराई । दोनों प्रासाद के दोनों तल्लों पर भमती में जिनबिंब स्थापित किए। (४) सं० बीदा ने शत्रुजय, आबू, गिरनार की सपरिवार यात्रा की समकित के लड्डू व खांड़ की लाहण की। जिनहंससूरिजी की वर्षगाँठ महोत्सव करके प्रत्येक घर में अल्ली मुद्रा बाँटी, पंचमी तप उद्यापन व स्वर्णमुद्रादि अनेक वस्तुएँ चढ़ाई, पाँच बार लाख नवकार जाप किया। (५) सं० सह समाज के शत्रुजय, गिरनार, राणपुर, वीरमगांव, पाटण, पारकरयात्राकर खांड व अल्ली की लाहण की। बीदा ने यात्रा से आकर प्रत्येक घर में दस-दस सेर घी की प्रभावना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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