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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ पांडित्यपूर्ण टीकाएँ आदि रचकर तत्तद् ग्रन्थों और विषयों के अध्ययन कार्य में बड़ा उपयुक्त साहित्य तैयार किया है।"
___ खरतरगच्छ के गौरव को प्रदर्शित करने वाली ये सब बातें मैं यहाँ पर बहुत ही संक्षेप रूप में, केवल सूत्र रूप से ही उल्लेखित कर रहा हूँ।
खरतरगच्छ में योग-अध्यात्म की अनूठी परम्परा रही है। योगीराज आनन्दघन, चिदानन्दजी, श्रीमद् देवचन्द जी, मस्तयोगी ज्ञानसागरजी (नारायण बाबा), अध्यात्मयोगी सहजानन्दघन आदि इसी परम्परा में हुए हैं। वर्तमान में माता धनबाई भी हम्पी की गुफाओं में अलख जगा रही हैं। जैनतीर्थों में शत्रुजय, गिरनार, राणकपुर, कापरड़ा, नाकोड़ा और उत्तर-पूर्व भारत में दिल्ली से लेकर गौहाटी तक सभी कल्याणक तीर्थ या मन्दिर खरतरगच्छ के आचार्यों व मुनियों की देन हैं। इनके निर्माण व जीर्णोद्धार में इसी गच्छ के मुनियों व श्रावकों ने योगदान दिया है। संक्षिप्त में यूं कहा जावे-चौबीसों तीर्थंकरों की कल्याणक भूमियों को तीर्थरूप देने में इसी गच्छ के आचार्यों व मुनियों की सूझ-बूझ थी।
__सही मायनों में “युगप्रधान" शब्द को सार्थक करने वाले चारों दादा इसी गच्छ की परम्परा के हैं जिनके नाम की माला समस्त जैन व अनेकों जैनेतर प्रतिदिन जपते हैं। समस्त भारत में जहाँ भी श्वेताम्बर जैनों के घर हैं, जैन दादावाड़ियाँ बनी हुई हैं जो आज करोड़ों-अरबों की जैन-सम्पति है। इसी “युगप्रधान" शब्द व “दादावाड़ी" का चमत्कार देखकर अन्य जैन समाज भी इन्हीं दोनों का प्रयोग कर अपने को धन्य मान रही है।
नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि की आगम टीकाएँ, उपाध्याय जमसोम की “युगप्रधानाचार्य गूर्वावली", आचार्य श्री जिनप्रभसूरि का "विविध तीर्थ कल्प" आचार्य अभयदेवसूरि का "जयन्तविजय" श्री जिनचन्द्रसूरि की “सम्वेग रंगशाला" महाकवि समयसुन्दर की “अष्ट लक्षी" आदि ग्रन्थ विश्व .. साहित्य के अजोड़ ग्रन्थ हैं। बाबा आनन्दघन के चौबीसी और पद तो अपने आप में अनूठे हैं ही।
खरतरगच्छ के श्रावक-श्राविकाओं ने अनेक धर्मकार्य किये, मन्दिर-मूर्तियाँ बनाईं, तीर्थों के जीर्णोद्धार करवाये, हजारों हस्तलिखित प्रतियाँ लिखवाईं। विविध धर्म प्रभावना के कार्य किये। उनका अपना महत्व है। संघपति सोमजी शाह, नर-रतन सेठ, मोतीचन्द नाहटा, मन्त्रीश्वर कर्मचन्द बच्छावत, दीवान अमरचन्द सुराणा, देशभक्त अमरशहीद अमरचन्द बांठियां, सर सिरेमल बाफना, जगत-सेठ परिवार की माणकदेवी, राक्याण परिवार के राजा भारमल आदि अनेक श्रावक-श्राविकाएँ हुई हैं जिन्होंने जैनशासन की अनुपम सेवा की है। विद्वान श्रावकों में इस युग में स्व० अगरचन्द जी नाहटा का अकेला ही ऐसा नाम है जिन्होंने अपनी पचास वर्ष की साहित्य-साधना से माँ भारती के ज्ञान भंडार को अनुपम ज्ञान-रत्नों से भर दिया और "विश्व के महान-पुरुषों के सन्दर्भ कोष" में उनका नाम आदर से जुड़ गया, जो अमेरिका से प्रकाशित हुआ है।
इसी गौरवमयी परम्परा में खरतरगच्छ के वर्तमान में साधु-साध्वियें यद्यपि संख्या में अत्यन्त अल्प हैं फिर भी वे अपनी त्याग-तपस्या एवं विद्धता से जैन एवं जैनेतर समाज में अपना विशिष्ट प्रभाव जमाये हुए हैं। इसी खरतरगच्छ की गौरवमयी परम्परा की आगमज्ञा विदुषीवर्या, शान्त, सरल स्वभाव, यथानाम तथागुण को सार्थक करने वाली प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री जी महाराज साहब का अभिनन्दन कर अपने को कृत-कृत्य मान रहे हैं। उनके चरणों में शतशः नमन-अभिनन्दन ।
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