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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ स्पष्ट है कि खरतरगच्छ में इस समय भी साध्वियों की बड़ी संख्या थी। वि० सं० १३८९ फाल्गुन वदी ५ को आचार्य श्री जिनकुशलसूरि का स्वर्गवास हुआ। दिवंगत आचार्य जिनकुशलसूरि के पूर्व आदेशानुसार क्षुल्लक पद्ममूर्ति को जिनपद्मसूरि नाम से वि० सं० १३६० ज्येष्ठ सुदी ६ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। यह पट्टमहोत्सव देवराजपुर स्थित विधिचैत्य में स्वगच्छीय साधु-साध्वियों तथा समाज के स्वपक्षीय श्रावकों के समक्ष बड़े धूम-धाम से सम्पन्न हुआ। आचार्य जिनपद्मसूरि ने वि० सं० १३९१ पौष बदी १० को लक्ष्मीमाला नामक गणिनी को प्रवतिनी के पद पर प्रतिष्ठित किया । वि० सं० १३६४ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को आप १५ मुनियों तथा जपद्धिमहत्तरा आदि ८ साध्वियाँ और कुछ श्रावकों के साथ अर्बुदतीर्थ की यात्रा पर गये। जिनपद्मसूरि द्वारा किसी महिला को साध्वी दीक्षा देने का उल्लेख नहीं मिलता। वि० सं० १४०४ वैशाख शुक्ल चतुदशी को अल्पायु में ही इनका दुःखद निधन हो गया। बाद की शताब्दियों में भी खरतरगच्छ में साध्वियों की पर्याप्त संख्या रही। नाहटाजी द्वारा संकलित और सम्पादित “बीकानेर जैनलेख संग्रह" में भी १८ साध्वियों का उल्लेख मिलता है। अन्य लेख संग्रहों में भी खोजने पर कई साध्वियों का नाम मिल सकता है । खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ में यद्यपि बड़ी संख्या में साध्वियाँ थीं, परन्तु उन्होंने स्वयं को धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित रखा। जहाँ इस गच्छ में अनेक साहित्योपासक मुनि हो चुके हैं, वहाँ श्रमणीसंघ में मात्र ४-५ विदुषी साध्वियों का उल्लेख प्राप्त होता है। श्री अगरचन्दजी नाहटा ने नारी शिक्षा का अभाव इसका प्रमुख कारण बतलाया है। जो सत्य प्रतीत होता है। वर्तमानयुग में नारी शिक्षा के उत्तरोत्तर प्रचार के कारण श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों की सभी शाखाओं में आज अनेक विदुषी साध्वियाँ हैं जो तपश्चरण के साथ-साथ स्वाध्याय में भी समान रूप से रत हैं। खरतरगच्छ में साध्वी सज्जनश्री ऐसी विदुषी साध्वी हैं जो अपनी विद्वत्ता के कारण ही प्रसिद्ध हैं। वस्तुतः नारी शिक्षा के प्रचार के कारण मध्यकाल की अपेक्षा आज खरतरगच्छ ही नहीं वरन् सम्पूर्ण जैन श्रमणीसंघ का भविष्य उज्ज्वल है। १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ०८५। २. वही पृ० ८५ ३. वही १०८६ ४. वही पृ० ८७ ५-६. वही पृ० १७७ ७. द्रष्टव्य-परिशिष्ट-च, पृ० ३८ ८. नाहटा, अगरचन्द-कतिपय श्वे० विदुषी कवित्रियाँ, चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रंथ (आरा, विहार १९५४) पृ० ५७० और आगे। ६. वही पृ० ५७३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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