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________________ खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा : डॉ. शिवप्रसाद साथ क्षुल्लक दीक्षा प्रदान की। इसी अवसर पर गणिनी प्रियदर्शना को प्रवर्तिनी पद तथा गणिनी रत्नमंजरी को महत्तरा पद प्रदान किया । वि० सं० १३६६ मार्गशिीर्ष बदी ६ को आपने पाटण में गणिनी केवलप्रभा को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। वि० सं० १३७१ फाल्गुन सुदी ११ को भीमपल्ली में प्रियधर्मा, यशोलक्ष्मी और धर्मलक्ष्मी को भागवती दीक्षा प्रदान की गयी। इसी वर्ष ज्येष्ठ बदी १० को जावालिपुर में पुष्पलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी, कनकलक्ष्मी और मतिलक्ष्मी ने प्रवज्या ली। प्राकृत भाषामय अंजनासुन्दरीचरित (रचनाकाल वि० सं० १४०७) की रचयिता और प्राकृत भाषा की एकमात्र लेखिका साध्वी गुणसमृद्धि महत्तरा आप की शिष्या थी। - वि० सं० १३७५ माघ सुदी १२ को नागौर में एक भव्य समारोह में शीर्षसमृद्धि, दुर्लभसमृद्धि और भुवनसमृद्धि को साध्वी दीक्षा तथा गणिनी धर्ममाला एवं गणिनी पुण्यसुन्दरी को प्रवतिनी पद प्रदान किया गया । इसी अवसर पर आचार्यश्री ने पं० कुशलकीर्ति को अपना उत्तराधिकारी (पट्टधर) घोषित कर उन्हें वाचनाचार्य पद दिया । संवत् १३७६ आषाढ़ सुदी ६ को ६५ वर्ष की आयु में आचार्य जिनचन्द्रसूरि का निधन हो गया। गच्छनायक आचार्य के निधन के पश्चात् गच्छ के ज्येष्ठ मुनिजनों, साध्वियों एवं श्रावकों ने एक सभा आयोजित कर स्वर्गीय आचार्य के पूर्वआदेशानुसार गणि कुशलकीर्ति को पाटन में जिनकुशलसूरि के नाम से उनके पट्ट पर आसीन कराया।10 आचार्य जिनकुशलसूरि ने वि० सं० १३८१ वैशाख बदी ६ को पाटन में धर्मसुन्दरी और चरित्रसन्दरी को साध्वी दीक्षा दी।11 वि० सं० १३८३ वैशाख बदी ५ को कमलश्री और ललितश्री की दीक्षा हुई 112 वि० सं० १३८६ को देवराजपुर में कुलधर्मा, विनयधर्मा और शीलधर्मा ने साध्वी दीक्षा ग्रहण की13 । इसी नगरी में वि० सं० १३८८ में जयश्री और धर्मश्री को क्षुल्लिका दीक्षा दी गयी । इस प्रकार १. खरतरगच्छवृहद्गुर्वावली पृ० ६३. २. वही पृ० ६४. ३. वही पृ० ६४. ४. वही पृ० ६४. ५. वही, पृ०६४ ६. सिरिजेसलमेरपुरे विक्कमचउदसहसतुत्तरे वरिसे । वीरजिणजम्मदिवसे कियमंजणसुन्दरीचरियं ॥५०३।। जो आसायण कुणई अणंत संसारू भमई सो जीवो। जो आसायण रक्खइ सो पासइ सासय ठाणं ॥५०४।। इति श्री अंजणासुन्दरी महासती कथानकं समाप्तम् । कृतिरियं श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यणी श्रीगुणसमृद्धिमहत्तरायाः ॥छ।। 'श्री जैसलमेर दुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भण्डार सूचीपत्र' संपा० मुनिपुण्यविजयजी अहमदाबाद, १९७२ ई० . क्रमांक-१२७८ पृ. २८२-२८३ . ७.. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ६५८. वही पृ० ६५ ६. वही पृ० ६८ . १०. वही पृ०७० ११. वही पृ०७७ १२. वही पृ० ८० १३. वही पृ० ८२ १४. वही पृ० ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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