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________________ 0 सन्तोष विनयसागर जैन सुखसागरजी महाराज के समुदाय की साध्वी परम्परा का परिचय जिस प्रकार शिथिलाचार परिहारी क्रियोद्धारक राजसागरजी महाराज की शिष्या रूपश्री जी से संविग्न साधु परम्परा का प्रारम्भ १९वीं शताब्दी इनका मिलन हुआ और इनकी विरक्त भावना में उपाध्याय प्रीतिसागर गणि से मानकर उनकी जागृत हो गई। तीन पुत्र, पाँच पौत्र और तीन परम्परा का इतिवृत्त दिया है/परिचय दिया है। पौत्रियाँ आदि परिवार के स्नेह बन्धन से मक्त उसी प्रकार साध्वी वर्ग ने भी इन मुनि-वृन्दों के होकर सम्वत् १६१८ के माघ सुदी पाँचम को साथ क्रियोद्धार अवश्य किया होगा, किन्तु इसका राजश्री जी के पास दीक्षा ग्रहण की, नाम उद्योत कोई प्रामाणिक उल्लेख प्राप्त नहीं है। क्रियोद्धा- श्री रखा गया । सम्वत् १९१६ का जोधपुर, सम्वत् रिका के रूप में सर्वप्रथम १६वीं शताब्दी में उद्योत- १९२० का अजमेर, १६२१ का किशनगढ़ और श्रीजी का ही नाम प्राप्त होता है। वर्तमान में १९२२ का चातुर्मास फलोदी में किया। फलोदी में समुदाय की परम्परा भी उद्योतश्रीजी की ही ही इन्हें सद्गुरु का सहयोग मिला । सद्गुरु थे शिष्या परम्परा है अतः उद्योतश्रीजी से ही परि- क्रियोद्धारक सुखसागरजी । सुखसागर जी की चय प्रस्तुत किया जा रहा है । उत्कृष्ट क्रिया पात्रता देखकर उद्योतश्री जी ने भी क्रियोद्धार किया और उनकी आज्ञानुयायिनी (१) उद्योतश्रीजी बन गई। इनका निवास स्थान फलोदी था । नाम दीक्षा के पश्चात् भी कई वर्षों तक पूर्वगृहीत नानीबाई था। बाल्यावस्था में ही फलोदी के ही अभिग्रह पूर्ण नहीं हुआ था, तब तक आपने घृत का रतनचन्दजी गोलेछा के साथ विवाह हुआ था। प्रयोग नहीं किया था। कई वर्षों बाद मक्सी तीर्थ अशुभकर्मोदय के कारण इनके पति का स्वर्गवास की यात्रा सानन्द की और इनका अभिग्रह पूर्ण हो गया। वैधव्य जीवन बिता रही थीं। पति के हआ। इन्होंने ४ साध्वियों को दीक्षा देकर अपने अचानक स्वर्गवास से मन संसार से विरक्त हो गया साध्वी समुदाय की वृद्धि की। चारों साध्वियाँ था। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि 'मक्सी तीर्थ की थीं-धनश्री, लक्ष्मीश्री, मगनश्री और पुण्यश्री । यात्रा करने के पश्चात् घी का प्रयोग करूगी।' लक्ष्मीश्री जी को संवत् १६२४ में और मगनश्री जी तीर्थ यात्रा हेतु ही जोधपुर आईं। वहीं संयोग से को संवत् १९३० में दीक्षा प्रदान की थी। ( ५६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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