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________________ मंजुल विनयसागर जैन खरतरगच्छ की संविग्न साधु परम्परा का परिचय यह निर्विवाद सत्य है कि यशोलिप्सा और शारीरिक सुविधावाद आदि ऐसी मानवीय दुर्बलताएँ हैं कि इसके घेरे में आकर अच्छे से अच्छे व्रती और तपस्वी भी अपने आत्मिक मार्ग से फिसल जाते हैं। यह दुर्बलताएँ यह भेद नहीं करतीं कि यह साधु है या साध्वी, श्रावक है या श्राविका, व्रती है या अबती। तनिक-सी फिसलन भी क्रमशः अपना व्यूह बनाकर बृहद् रूप धारण कर लेती है । फलतः मानव उस फिसलन की गर्त में धीमे-धीमे बढ़ता जाता है और उसका ऐसा आदी हो जाता है कि उसको धर्म के आवरण में लपेटना चाहता है। इसी के प्रतिफलस्वरूप जीवन में शिथिलाचार बढ़ता जाता है। जिस शिथिलाचार का आचार्य वर्धमान और आचार्य जिनेश्वर ने सक्रिय विरोध किया था और सुविहित/संविग्न परम्परा की नींव रखी थी वह शताब्दियों तक फलती-फूलती रही। धीरे-धीरे शिथिलाचार ने इसमें प्रवेश करना प्रारम्भ किया। इसी के प्रतिकार रूप में अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ने संवत् १६१४ में क्रियोद्धार किया। पुनः इसमें शिथिलता के बीज पैदा हुए । संवत् १६९१ में समयसुन्दरोपाध्याय ने क्रियोद्धार किया। धीमे-धीमे पुनः इसमें विकृतियाँ आने लगी तो इसके प्रतिकारस्वरूप कई क्रियापात्र साधुओं ने समय-समय पर क्रियोद्धार किया। इन क्रियोद्धारक साधुवर्ग की परम्परा वर्तमान समय में संविग्न परम्परा कहलाई। इस समय में यह संविग्न परम्परा ३ महापुरुषों के नाम से खरतरगच्छ में प्रसिद्ध हैं : १. सुखसागरजी म० का समुदाय, २. कृपाचन्द्रजी म० का समुदाय और ३. मोहनलालजी म० का समुदाय । अतः इन तीन समुदायों का यहाँ संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करना अभीष्ट है। सुखसागरजी म. का समुदाय सुखसागरजी म. की परम्परा में यह एक विशेष बात है कि वे अपनी परम्परा को "क्षमा कल्याणजी म. की वासक्षेप" के नाम से मानती आ रही हैं, अतः सुखसागरजी म. की परम्परा का वस्तुतः अभ्युदय महोपाध्याय क्षमाकल्याणजी म. से ही प्रारम्भ होता है। इसी कारण इस परम्परा का परिचय क्षमाकल्याणजी के दादागुरु उपाध्याय प्रीतिसागर गणि से प्रारम्भ करते हैं। (१) उपाध्याय प्रीतिसागरगणि प्रीतिसागर गणि आचार्य जिनभक्तिसूरि के शिष्य थे। आपका जन्म नाम प्रेमचन्द था। दीक्षा ( ४४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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