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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ स्थान जैन दादाबाड़ी, देश-विदेश में विख्यात है । जहाँ वर्ष भर सैकड़ों यात्री आते रहते हैं । और फागुन बदी अमावस्या को भारी मेला लगता है । पूजा, रात्रि जागरण, वरघोड़ा, स्वधार्मिक वात्सल्य आदि बड़ी धूमधाम से होते हैं। आपका प्रभाव इस कलिकाल में भी प्रत्यक्ष है । अनेक भक्तों के कष्टनिवारण करने के समाचार तो आज भी कई पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं । इनके भक्तों द्वारा रचित हजारों स्तवन जन-जन के मुख से सुने जाते हैं। इनकी महिमा के विषय में कुछ लिखना तो सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है । अनुमानतः पौने सात सौ वर्ष हो जाने पर भी दादा श्री जिनकुशल सूरि का नाम जैन जगत में सुविख्यात है । उनके जन्म की सप्तम शताब्दी उन्हीं के जन्म स्थान सिवाणा में मनाई गई । पुरानी दादावाड़ी के स्थान पर नवीन जिनमन्दिर सहित दादाबाड़ी का निर्माण हुआ है । मन्दिर में भगवान शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि की प्रतिमाएँ और दादावाड़ी में सभी दादागुरुओं की मूर्तियाँ स्थापित हो गयी हैं । पुरानी दादाबाड़ियों, स्तूपों, मूर्तियों एवं चरणपादुकाओं की संख्या लगभग १० हजार है । और दिनानुदिन वृद्धिंगत है। सैकड़ों गुरुदेव भक्तगण दादा के जाप पूजन गुणगान भक्ति कर रहे हैं । मनोवांच्छित पूर्ण करने में श्री दादागुरुदेव साक्षात् कल्पवृक्ष के समान हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कोई उन्हें जानता तक नहीं । यह सब उनके महान् प्रभाव के साक्षात् प्रमाण हैं । इसी परम्परा में भंडारों के संस्थापक, हजारों मूर्तियों की अंजनशलाका ( प्रतिष्ठाकारक) श्री जिनभद्रसूरि, नाकोडा तीर्थ संस्थापक श्री कीर्तिरत्नसूरि, बादशाह अकबर व जहाँगीर प्रतिबोधक, सैकड़ों शिथिलाचारी साधुओं को मत्थेरण (गृहस्थी वस्त्र धारण ) बना देने वाले महान् क्रियोद्धारक, चतुर्थ दादा श्री जिनचन्द्रसूरि, आठ अक्षरों के दस लाख अर्थ करने वाले अद्भुत विद्वान श्री समयसुन्दर जी गणि एक पूर्व का ज्ञान रखने वाले, द्रव्यानुयोग के, न्याय के, तत्त्वचर्चा के अनेक गद्य पद्यमय ग्रन्थों के रचयिता श्रीमद् देवचन्द्र गणि तथा योगिरान आनन्दघन आदि महापुरुष हुए हैं, जिनकी चरित्रतपोनिष्ठता, विद्वत्तादि गुण सौरभ से वीरशासन उद्यान सुरभित है । आज तक अनेक शासन प्रभावक, मुनिराज, साध्वियाँ, श्रावक, श्राविका आदि से यह परम्परा समृद्ध रही है और भविष्य में भी इस परम्परा को अखण्ड रखने वाले अनेक महानुभाव होंगे । इसी मंगलमय भावनापूर्वक विरमित होती हूँ । सज्जन वाणी १. जिन्होंने सत्य को आचरण में उतारा है, जिनकी वाणी सत्य से ओतप्रोत है, जिनका मन भव्य चिंतन में लीन है वे संसार के पूज्यवान माने जाते हैं । -: २. जिन्होंने अस्तेय व्रत धारण कर लिया, उन्हें सभी सम्पत्तियाँ अनायास मिलती हैं उनके जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती । और वे सभी के विश्वासपात्र बन जाते हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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