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________________ - ३२ खरतर गच्छ का संक्षिप्त परिचय : महोपाध्याय विनयसागरजी से आचार्य पद प्रदान करवाकर जिनसिंहसूरि नाम रखवाया। सूरचन्द्र कृत रास के अनुसार इस पद महोत्सव पर टांक गोत्रीय श्रीमाल राजपाल ने १८०० घोड़े दान किये थे । सम्राट् जहाँगीर भी आपकी प्रतिभा से काफी प्रभावित था । यही कारण है कि अपने पिता का अनुकरण कर सम्राट जहाँगीर ने आपको युगप्रधान पद प्रदान किया था। संवत् १६७४ में आपके गुणों से आकर्षित होकर आपका सहवास एवं धर्मबोध प्राप्त करने के लिए सम्राट जहाँगीर ने शाही स्वागत के साथ अपने पास बुलाया था । आचार्यश्री भी बीकानेर से बिहार कर मेड़ता आये थे। दुर्भाग्यवश वहीं संबत् १६७४ पौष शुक्ला त्रयोदशी को आपका स्वर्गवास हो गया। संवत् १६७१ में लवेरा में वाचनाचार्य समयसुन्दर को उपाध्याय पद से विभूषित किया था। आपकी चरण-पादुकाएँ बीकानेर रेलदादाजी और नाहटों की गवाड़ में ऋषभदेवजी के मंदिर में विद्यमान है। (२५) जिनराजसूरि आप बीकानेर निवासी बोहिथरा गोत्रीय श्रेष्ठी धर्मसी के पुत्र थे । इनकी माता का नाम धारलदे था । संवत् १६४७ वैशाख सुदी ७ बुधवार, छत्रयोग, श्रवण नक्षत्र में इनका जन्म हुआ था। इनका जन्म नाम खेतसी था। संवत् १६५६ मिगसर सुदी ३ को इन्होंने आचार्य जिनसिंहसरि के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा नाम राजसिंह रखा गया, किन्तु बृहद् दीक्षा के पश्चात् इनका नाम राजसमुद्र रखा गया था । बृहद् दीक्षा यु० श्रीजिनचन्द्रसूरि ने दी थी। आसाउल में उपाध्याय पद स्वयं युगप्रधानजी ने संवत् १६६८ में दिया था। जैसलमेर में राउल भीमसिंहजी के सन्मुख आपने तपागच्छीय सोम विजयजी को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। आचार्य जिनसिंहसूरि के स्वर्गवास होने पर ये संवत् १६७४ फाल्गुन । मेड़ता में गणनायक आचार्य बने । इनका पट्ट-महोत्सव मेड़ता निवासी चोपडा गोत्रीय संघवी आराकरण ने किया था । पूर्णिमा पक्षीय श्रीहेमाचार्य ने सूरिमन्त्र प्रदान किया था। अहमदाबाद निवासी संघपति सोमजी कारित शत्रुजय की खरतरवसही में संवत् १६७५ वैशाख शुक्ला १३ शुक्रवार को ७०० मूर्तियों की इन्हीं ने प्रतिष्ठा की थी। जैसलमेर निवासी भणशाली गोत्रीय संघपति थाहरू कारित जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ लौद्रवाजी की प्रतिष्ठा भी संवत् १६७५ मार्गशीर्ष शुक्ला १२ को इन्हीं ने की थी। और इनकी ही निश्रा में संघपति थाहरू ने शत्रुजय का संघ निकाला था। भाणवड पार्श्वनाथ तीर्थ के संस्थापक भी ये ही थे । आपने संवत् १६७७ ज्येष्ठ बदी ५ को चोपडा आसकरण कारापित शान्तिनाथ आदि मन्दिरों की प्रतिष्ठा की थी। और, बीकानेर, अहमदाबाद आदि जगरों में ऋषभदेव आदि मन्दिरों की प्रतिष्ठा भी की थी। कहा जाता है कि अम्बिकादेवी आपको प्रत्यक्ष थी और देवी की सहायता से ही गांगाणी तीर्थ में प्रकटित मूर्तियों के लेख आपने बाँचे थे । आपकी प्रतिष्ठापित सैकड़ों मूर्तियाँ आज भी उपलब्ध हैं। संवत् १६८६ मार्गशीर्ष कृष्णा ४ रविवार को आगरे में सम्राट शाहजहाँ से आप मिले थे और वहाँ वाद-विवाद में ब्राह्मण विद्वानों को पराजित किया था एवं स्वदर्शनी लोगों के विहार का जहाँ कहीं प्रतिषेध था वह खुलवाकर शासन की उन्नति की थी। राजा गजसिंह जी, सूरसिंह जी, असरफखान, आलम दीवान आदि आपके प्रशंसक थे। शूक्ला सप्तमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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