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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ संघयात्रा संवत् १३३३ में सेठ विमलचन्द्र के पुत्र सेठ क्षेमसिंह और सेठ बाहड़ ने आचार्यश्री की उपस्थिति में विशाल तीर्थ यात्रा संघ निकाला था। यात्रा संघ में आचार्यश्री के साथ जिनरत्नाचार्य, लक्ष्मीतिलकोपाध्याय, विमलप्रज्ञोपाध्याय, वाचक पद्मदेव गणि आदि २७ साधु एवं प्रवर्तिनी ज्ञानमाला, प्र० कुशलश्री, प्रवर्तिनी कल्याणऋद्धि आदि २१ साध्वियों का समूह भी सम्मिलित था। यह तीर्थयात्रा संघ चैत्र बदी पांचम के दिन जालौर से रवाना होकर श्रीमाल, पालणपुर, तारंगा, बीजापुर, खम्भात, शत्रुञ्जय तीर्थ, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा करता हुआ सकुशल एवं सानन्द वापस जालौर पहुंचा था। संवत् १३३५ में जव आचार्य श्री चित्तौड़ आए थे, तो उनका प्रवेश महोत्सव बड़े आडम्बर के साथ हुआ था और वहाँ के प्रतिष्ठा आदि समस्त महोत्सवों में चित्तौड़ के महाराज कुमार अरिसिंह जी भी उपस्थित थे । संवत् १३३७ वैशाख बदी नवमी के दिन आचार्यश्री का बीजापुर में प्रवेश महोत्सव भी अनुपमेय हुआ था । उस समय बीजापुर के महाराजाधिराज सारंगदेव, महामात्य मल्लदेव, मन्त्री बुद्धिसागर आदि की उपस्थिति में ही प्रतिष्ठा महोत्सव आदि विशिष्ट कृत्य सम्पन्न हुए थे, जो अभूतपूर्व थे । १३३६ में विधि मार्ग अनुयायी संघों के साथ आचार्यश्री ने आबू की यात्रा की । तत्पश्चात् समियाणा के महाराजा श्री सोम के अत्याग्रह को स्वीकार कर वहाँ चातुर्मास किया। और चातुर्मास पश्चात् जैसलमेर के नरेश कर्णदेव के अत्याग्रह पर १३४० की फाल्गुन चौमासी जैसलमेर की थी । जैसलमेर से विहार कर आचार्यश्री जालौर आए, वहीं उनके शरीर में भयंकर दाह ज्वर उत्पन्न हुआ और अपने ही करकमलों से जिनप्रबोधसूरि जी ने संवत् १३४१ वैशाख सुदी तीज के दिन अपने पाट पर जिनचन्द्रसूरि को स्थापित किया और वैशाख सुदी अष्टमी के दिन इस पार्थिव देह को त्याग कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए। खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि के अनुसार आपके द्वारा निर्मित वृत्तप्रबोध, पंजिका प्रबोध एवं बौद्धाधिकार विवरण आदि ग्रन्थों का उल्लेख प्राप्त होता है किन्तु वर्तमान में उनमें से कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, तदपि आचार्य बनने के पूर्व संवत् १३२८ में रचित कातन्त्र दुर्गपदप्रबोध टीका अवश्य प्राप्त है। आपके शासनकाल में विवेकसमुद्रोपाध्याय आदि अनेकों गीतार्थ विद्वान् थे । (११) कलिकाल केवली जिनचन्द्रसूरि आचार्य जिनप्रबोधसूरि के पाट पर कलिकाल केवली जिनचन्द्रसूरि हुए। आपका जन्म संवत् १३२४ मिगसर सुदी चौथ के दिन सिवाणा में हुआ था। सिवाणा के मन्त्री देवराज आपके पिता थे और आपकी माता थी कोमल देवी । इनका जन्म नाम खम्भराय था । जिनकुशलसूरि के पिता मंत्री जिल्हागर खम्भराय के भाई थे अतः जिनकुशलसूरि जी के ये चाचा होते थे। संवत् १३३२ ज्येष्ठ सुदी तीज को स्वर्णगिरि से जिनप्रबोधसूरि ने इनको दीक्षा प्रदान कर क्षेमकीर्ति नामकरण किया था। जिनप्रबोधसूरि ने अपनी अन्तिम अवस्था में क्षेमकीर्ति को आचार्य/गणनायक पद के अनुरूप समझकर संवत् १३४१ वैशाख सुदी तीज के दिन बड़े समारोहपूर्वक अपने ही हाथों से अपने पाट पर स्थापित कर जिनचन्द्रसूरि नाम रखा। इसके बाद जिनचन्द्रसूरि ने संवत् १३४२ वैशाख सुदी १० के दिन जालौर के महावीर चैत्य में २क्षल्लक और ३ क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी। उसी दिन वाचनाचार्य विवेकसमुद्र गणि को उपाध्याय पद, सर्वराज गणि को वाचनाचार्य पद और बुद्धिसमृद्धि गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया । इसी वर्ष ज्येष्ठ बदी ६ को सेठ क्षेमसिंह निर्मापित २७ अंगुल प्रमाण वाली रत्नजटित अजितनाथ प्रतिमा एवं अन्य श्रेष्ठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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