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वन्दन करें हम..... -आर्या प्रियदर्शनाश्रीजी
प्रकर्ष भाव से मम सिर ऊपर
वरदहस्त रख दो गुरुवर ति तिमिर हटाकर मम मानस का नी नीतियुक्त बने जीवन स्तर .......(१) श्री श्री चरणों का आश्रय पाकर सज् सद्ज्ञानामृत पान करूं ज जन्म जरा मरणादि रूप इस न नश्वर तन का त्याग करू .......(२) श्री श्री को प्राप्त करू तब मेरी ___ मद मोह मान अरु क्रोध की सेना
हारे, जीवन उज्ज्व ल हो .......(३) रा राज मिले अपने घर का
जव गुरु सज्जन में श्रद्धा जागे सा सागर सम गम्भीर है जीवन
हर क्षण निज का ध्यान धरें बड़े-बड़े पडित भी जिनकी गुण गरिमा का ।
गान करे का काम-क्रोध मद लोभ भगे तब ह हृत्तंत्री के तार बजे द दमन किया इन्द्रिय राज पर
यम नियम के साज सजे । सेवागुण अतिउत्तम तुझ में अमर अखंड आनन्ददायी भिन्न स्वरूप जड़ चेतन का है नहीं कभी सुख दुःखदायी न्याय काव्य कोष ज्योतिष की दर्शन की भी ज्ञाता तुम नम्र भाव से तव पद कंज में
वन्दन करें प्रियनेत्री हम। ........(७)
कोटि-कोटि अभिनन्दन! -प्रवर्तक श्री महेन्द्रमुनि 'कमल' अभिनंदन, कोटि-कोटि अभिनंदन त्याग का, वैराग्य का संयम का, शील का सत्य के कृत्य का अहिंसा के शांतिदायी नृत्य का । धर्म का, ध्यान का, साधना की गौरव गरिमा मण्डित पहिचान का। आप सज्जन हो और सरल हो सघन में विरल हो मूर्ति करुणा की, स्नेह धारा हो वरुणा की। मन से सौम्य हृदय से तरल हो अहिंसा संयम, तप और अनेकानेक सदगुणों से तरल हो। धवल परिधान में, अपने ही ध्यान में युग को दिशा बोध देने पंक में फंसी युग नाव खेने अवस्था व्यवस्था की चिंता से दूर बही जा रही हो, चली जा रही हो । आपसे महावीर का, आनंदातिरेक प्रदान करने वाली वाणी सुन-सुनकर भव्य, प्राणी गद्गद् हो रहा है, दुष्प्रवृतियाँ खो रहा है। संप्रदायवाद से दूर, समन्वय भाव से भरपूर महाश्रमणी सज्जन आदरपूर्वक अभिनंदन कोटि-कोटि अभिनंदन ।
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