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खण्ड २ | श्रद्धार्चन : काव्याञ्जलि
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पुण्ण-जीवण-जोइं वि, विलिहिऊणं स-णाम-धण्णा-कया। पुण्णं धम्म-धुरि अवि, समण-संघ-इहिवित्त-सुरक्खिया ॥३८।। समण-सव्वस्स-पोत्थी, साहु-जीवणस्स पह-पदरिसिगा वि। आयार-वियारहिं, परिपुण्णा पइट्ठा वि गया॥३६॥ तमोछण्णं लोए तु, समुवागए दिवायरे जायए। पगासगं-अइणिम्मतो, जणमणो-तम-रहिओ होई ।।४०॥ महावीरस्स चरिया, पाइय-णिबद्ध-कप्पसुत्तम्मि अत्थि । तस्स पाइयमुत्तस्स, रट्ठिय-भासा-हिंदी कया ।।४।। ण तु अईसरला-सु-गमा-सुरस-भावाणुजुत्तो अवि । जण-कल्लाण-णिमित्तं, एसा अइ-सेट्ठ-कज्ज कया। ४२॥ वारह-पव-वाक्खाइ दव्वाणुजोगमय-अज्झप्प-पबोहो । वजभासा समलंकिअ-पज्ज-कवित्त-सवइया-दव्व-संगहो ।।४३।। चेइय-वंदण-कुलकं, गुरुदेव-जिणदत्तसूरिणा विरइयं । वयारोव-विहि णामा, हिंदी-भासाए पगासिआ च ॥४४।। बालावबोहणटुं चउवीस-जिण-थवण रट्ठ-भासाए।। कुसुजलि - विणयंजलि-गोयंजलि-वीर-गुण - गुच्छआई ।.४५।।
तव्व-पुण्ण-चरिया
अज्झयणं ण तु केवलं, ण कव्व-धारा अवि वलिट्ठा । णाण-झाण-तव रत्ता, स-पर-कल्लाण-करणळं वि ।।४६।। तुह णिय-जीवण-झाणे, उवहाण-णव-पय-ओली धारिया। विंस - थाणय - तव-ओली - कल्याणय-तव-मण रंजिया ॥४७॥ पखवासा तव-कया वि, अप्प-धम्म-पवड्ढणं णिच्चं । पंचमि-सोलिया-तवो, दस-पच्चक्खाण-तवो सया किया ॥४८॥ जया विहार-अज्जाइ, तया समागया जणा पभूया य । पाउं धम्म - सुहाणं, सच्च - सील - संजम - हेऊहिं ॥४६॥ अहं उदयचंदो अवि, अहिणंदण-वंदणं करोमि कुणसि णिच्चं । धम्मस्स बोहणट्ठ, सद्धावंतो तत्त वियारो ॥५०॥ सत - सतवासं जीवउ, सा सज्जणसिरी महासई। अस्सि-वास पेरतं, का का जीवा ण धण्णा अस्थि ॥५१॥
खण्ड २/७
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