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________________ खण्ड : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ C साध्वी रंभाश्रीजी महाराज आपश्री स्वभाव से पूरी तरह मुनित्व जीवन से निकट हैं। साधुत्व का लक्षण हैं-समता व अनासक्ति । यह जानकर प्रसन्नता हुई कि भगिनी प्रवर्तिनी जिनके जीवन में ये दो गुण आत्मसात हो गये, वे श्रीसज्जनश्रीजी महाराज का अभिनन्दन किया जा निश्चित रूप से निर्ग्रन्थ बन गये । पू. गुरुवर्याश्री रहा है। उनका व्यक्तित्व अपने आप में अनुपम व अनु को इन्हीं गुणों से परिपूर्ण देखा। ____ मैं अन्तःकरण से हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ करणीय है। गुरुदेव से प्रार्थना है कि चिरायु बन जिनशासन यही शुभकामना करता हूँ कि पूज्या प्रवर्तिनीजी की सेवा संलग्न रहें। दीर्घायु बन संसार-रसिकों को शासनरसिक बनायें। श्री ज्ञानचन्दजी लूनावत (मन्त्री : श्री जिनदत्त सूरि सेवा संघ, कलकत्ता) 0 श्री हेमचन्द चौरडिया पूज्यवर्या प्रवर्तिनी महोदया थीसज्जनश्रीजी (व्यवस्थापक : ज्ञान भंडार, श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ, जयपुर) महाराज साहब के अभिनन्दन समारोह के समाचार जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। आपथी में ऐसे यह मन का व्यापार निरन्तर, अनेकों गुण हैं जिससे मस्तक श्रद्धा से स्वतः ही झक इससे तो वह छूट सकेगा। जाता है । आपश्री प्रकांड विदुषी हैं। प्रकांड विद्वान तोड़ेगा ममता के वन्धन, होना बहुत बड़ी बात है किन्तु उससे भी बड़ी बात कर पायेगा आत्म-नियन्त्रण, है विद्वत्ता का लेश मात्र भी अहंकार न होना। जिसने मन को जीत लिया-, विद्वत्ता की उच्च स्थिति में पहुँचने के बाद भी अहं वह जीवन को जीत सकेगा। कार पर विजय पाने वाले व्यक्ति तो नगण्य ही होते कवि के उपरोक्त विचारों को सार्थक करने हैं । पूज्या प्रवर्तिनीजी इस गण को प्राप्त करने में वाली प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज साहब पूर्ण समर्थ हुई हैं। का अभिनन्दन करना अपने आप में एक महान पुण्य व्यर्थ की विकथा से दूर रहकर धर्मध्यान व कार्य है । शुक्ल ध्यान में रहना मुनि जीवन का प्रमुख गुण आपके आदर्श चरित्र, सौम्यता, संयम, सरल है। प्रवर्तिनी महोदया सदा ही विकथा से दूर तप- स्वभाव, हृदय की भव्यता एवं विद्वत्ता का अभिस्वाध्याय में लीन रहती है। आपश्री में, ज्ञान एवं नन्दन करके सम्पूर्ण जैन समाज गौरवान्वित चारित्र दोनों का एक साथ समावेश है। होगा ही, साथ ही साथ जैन समाज के उत्थान में इसके अतिरिक्त विनम्रता, मधुर भाषणता, आपका योगदान सदैव की भांति मिलता रहेगा। सेवाभावना आदि अनेक गुण आप में है । आपश्री आप दीर्घायु हों इसी कामना के साथ । C. केवल विदुषी ही नहीं, वक्तृत्व कला सम्पन्न, सफल लेखिका एवं कवयित्री भी हैं। आपश्री का अभिनन्दन 0 श्रीमती प्रेमदेवी झाड़चूर (जयपुर) करते हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। हार्दिक प्रसन्नता का विषय है कि पू. गुरुवा 1 श्री महताबचन्दजी बाँठिया, बम्बई श्री सज्जनश्रीजी म. सा. का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रका- . अत्यन्त आनन्द का अनुभव हो रहा है कि पूज्या शित हो रहा है। प्रवतिनीश्री का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। जिस तरह से माँ अपने बच्चे को अंगुली पकड़ पू. गुरुवर्याश्री जैनाकाश की दिव्यतारिका हैं। कर सही रास्ता बताती है, भटकने नहीं देती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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