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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ अवधि में आपश्री की प्रेरणा से अनेक प्रकार की साहिबा जैन शासन नभ की एक ज्योतिर्मय तपस्या, वरघोडा पूजा, जागरण, स्वामिवात्सल्य तारिका है। आदि हुए । स्थानीय जैन एवं अजैन समाज आपकी आपके विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य, विनयपूर्ण शांत सेवाप्रतिभाशाली प्रखर वक्तृत्व कला से लाभान्वित भाव, निरभिमान स्वल्प मधुर भाषण नियमित चर्या हुआ। अनुकरणीय है। आपश्री का झुंझनु समाज से अत्यन्त स्नेह जैनशासन की आपने बहुत सेवा की है तथा रहा है। जैन आगमों की ज्ञाता हैं। आपने बहुत से आगम ___ २० मई १९८६ को सम्पन्न होने वाले आपके तथा शास्त्रों का गहन अध्ययन करके, जन-साधारण अभिनन्दन समारोह अवसर पर झुंझनु श्री संघ शुभ के समझने योग्य भाषा में जो अनुवाद किये हैं उनसे कामनायें प्रेषित करता है तथा आपके दीर्घ जीवन समाज को इस सम्बन्ध में बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ है की श्री गुरुदेव जी महाराज से प्रार्थना करता है। तथा समाज को बहुत बल मिला है । 0 ऐसी श्रेष्ठ विदूषी पूजनीय आर्या प्रवर्तिनी 0 मीसरीलालजी लोढा श्री सज्जनश्रीजी महाराज का जितना भी गुणगान (अध्यक्ष-श्री महाकौशल जैन श्वे० मूर्तिपूजक संघ) किया जाये उतना ही कम है। इस सम्बन्ध में जो जयपूर श्री संघ परम सौभाग्यशाली है जिसे अभिनन्दन समारोह प्रवर्तिनी श्री जी महाराज के “आगम ज्योति" उपाधिधारिणी, विदूषीवर्या शान्त, सम्मान में जयपुर में आयोजित किया जा रहा है, सरल, स्वभावा प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म० सा० वह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है। का अभिनन्दन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है इस पुनीत अवसर पर अपनी शुभ-कामनाओं साथ ही इस विराट अवसर पर जैन शासन की को प्रेषित करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। दिव्य ज्योतिर्मय तारिका, क्षमाशील, विनय और आशा है श्री गुरुदेव की कृपा से यह उत्सव सानन्द नम्रता की साकार जंगम मूर्ति, सौम्य सरलता सफल होगा। की प्रतीक गुरुवर्या प्रवर्तिनी पू० श्री सज्जनश्रीजी म० सा० के अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन का भी सुखद प्रसंग उपलब्ध हुआ है। हम इस शुभ अवसर के लिए आपको हार्दिक बधाई देते हैं। D श्री हस्तीमलजी मुणोत, सिकन्दराबाद साथ ही पूज्यवर्या साध्वीरत्न प्रवर्तिनी श्री (कार्याध्यक्ष : अ. भा. श्वे. स्थानकवासी सज्जनश्रीजी म. सा० के स्वास्थ्य लाभ की आकांक्षा जैन कान्फ्रेंस, दिल्ली) करते हुए उनके दीर्घायु होने की मंगल कामना प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज का अभिनन्दन करते हैं। एक सच्ची श्रमणी का अभिनन्दन है। जिनकी साधना में-ज्ञान, साधना, वैयावृत्य और धर्मप्रचार के जवाहरलालजी राक्यान चार स्तंभ लगे हैं । आपका हृदय बहुत ही उदार, (भू० पू० अध्यक्ष : खरतरगच्छ महासंघ) विनम्र और पाप-भीरु है। आपका अभिनन्दन आप “आगम ज्योति" उपाधि धारिणी पूज्य- कर हमें सचमुच प्रमोदभाव का आनन्द अनुभव वर्या प्रवर्तिनी महोदया श्री सज्जनजी महाराज होता है। खण्ड २/३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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