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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएं श्री निर्मलाश्री जी म. सा० आदि अनेक विशिष्टताओं से युक्त है जीवन जिनका वे हैं प्रवर्तिनी पू० श्री सज्जनश्री जी मसा० । हार्दिक प्रसन्नता का विषय है पूज्यवर्या प्रवर्तिनी पूज्या प्रवर्तिनी सा० का जीवनवृक्ष अनेकानेक श्री सज्जनश्रीजी म.सा० के दीक्षा स्वर्ण जयन्ती गुणों रूपी फलों से आपूरित है। यह बात निश्चित उपलक्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। है कि साधक की साधना जितनी बलवती होती मेरा परम सौभाग्य रहा कि मुझे बचपन से ही जाती है-उसमें उतनी ही सरलता बढ़ती चली पूज्य गुरुवर्याश्री के दर्शनों का लाभ मिलता रहा जाती है। उसके व्यवहार में निश्छलता सहज होती और अब तो चरणों में रहने का भी सौभाग्य प्राप्त है। सांसारिक क्षेत्र में ज्ञान के साथ अभिमान, पद हुआ। के साथ मद उभरता है लेकिन साधना क्षेत्र में आपका स्वभाव अत्यन्त सरल विनम्र है । हम ज्ञान के साथ सरलता बढ़ती है। जब कभी भी जाते तो सरलता-वात्सल्यता के साथ हृदय में आल्हाद भर जाता है, अनुमोदना भाव बातचीत करतीं। मने अपने जीवनकाल में कभी उभरने लगता है-पूज्या प्रवर्तिनी जी के जीवन उत्तेजित नहीं होते देखा । आरम्भ से अभी तक वैभव को देखक र । प्रवर्तिनी पद और कितनी सहउनके जीवन में कभी कृत्रिमता नहीं देखी। किसी में जता, आत्मज्ञान में सर्वोपरि स्थान पर कितनी भेदभाव करते नहीं देखा । माया, कपट, छल करते सरलता, जीवन का वृद्धत्व पर कितनी अप्रमत्तता। नहीं देखा । सदा स्वाध्याय करना व कराना इसी अभिनन्दन है उनका, अभिवन्दन है उनकामें तल्लीनता देखी। तप, त्याग, संयमनिष्ठ बनने जो जीवन के एक-एक पल को सतर्कता से जी रहे की सभी को प्रेरणा देती रहती हैं कि संयम, तप, हैं। प्रार्थना है प्रभु से-वे शतायु हों और हमारी त्याग के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं है। कितने पथपशिका बनी रहें। भी पढ़ लो, दुनिया से कितनी भी प्रसिद्धि पा लो, लोगों को कितना भी रिझालो परन्तु जब तक आत्मा को नहीं रिझाओगे तब तक कुछ नहीं है । श्री अविचलश्री जी म० गुरुदेव से मैं पूज्य गुरुवर्याश्री की शतायु (सुशिष्या प० पू० प्र० विचक्षणश्री जी म० सा०) दीर्घायु की कामना करती हुई पुनः गुरुवर्याश्री से यही आशीर्वाद चाहती हूँ कि आपकी तरह सरल, केवल खरतरगच्छ संघ के लिए ही नहीं परन्तु सहिष्ण बन जीवन को समुज्ज्वल बना मोक्ष लक्ष्य समस्त जैन संघ-समाज के लिए गौरव की बात है को प्राप्त करू । इसी शुभेच्छा के साथ चरणों में कि प० पू० जैन कोकिला प्र० स्व० विचक्षणश्री जी कोटि-कोटि अभिनन्दन-अभिवन्दन । म० सा० की पट्ट धारिणी, आशु कवयित्री, आगम मर्मज्ञा प्र० सज्जनश्री सा० का अभिनन्दन होने जा साध्वी श्री मणिप्रभाश्री जी म.सा. रहा है । यह उनके व्यक्तित्व का परिचायक है अतः विशेष कुछ न लिखकर शासनदेव व गुरुदेव से (सुशिष्या स्व० साध्वी विचक्षणश्री म०सा०) प्रार्थना है कि इन्हें दीर्घायु करें जिससे चिरकाल नाम के साथ गुण का अद्भुत संयोग, ज्ञान के तक जिनशासन की प्रभावना करते रहें एवं अनेकासाथ सरलता का सुयोग, पद के साथ वात्सल्य का नेक भक्तात्माओं को वीतराग वाणी का अमृत पान योग, अप्रमत्तता से समय का उपयोग, विद्वत्ता के कराकर संयममार्गी व मोक्षगामी बनावें । इसी साथ कवित्व का प्रयोग, ज्ञान दान में पूर्ण मनोयोग शुभकामना के साथ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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