________________
खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ नहीं होते, अपितु आत्म-परिवर्तन के लिए से मानव मन में दिव्य तेज ओज का संचार करती होते हैं।
रही है । चाहे क्रान्ति हो या शान्ति हो, भ्रान्ति के
के चक्कर में न उलझ कर दोनों परिस्थितियों में ___शुरू से स्वाध्याय का गुण जीवन का दूसर।
- शानदार दायित्व निभाती है। वह ममतामयी माँ अंग बना हुआ है। इस अवस्था में स्वाध्याय करने
है, सहज स्नेह बिखेरती भगिनी है, श्रद्धा स्निग्ध व कराने का क्रम नहीं छोड़ा, ये इनकी अप्रमत्तता
कन्या है तो सर्वस्व समर्पित सह-र्मिणी भी है । का द्योतक है।
भारतीय साहित्य में नारी नारायणी के रूप में सदा जीवन में तप और त्याग की रुचि भी अनु- प्रतिष्ठित रही है। करणीय है । आप व्याख्यात्री के साथ-साथ एक
___नारी की इस गुणवत्ता को कुशल प्रहरी की सफल लेखिका व आशुकवयित्री भी हैं। भाँति संरक्षित रखने में पूर्ण प्रयत्नशील विदुषी
गुरुदेव से प्रार्थना है कि सुसाध्वीजी पूर्ण श्रेष्ठा सज्जनश्री जी म० सा० के व्यक्तित्व एवं स्वस्थ रहकर जैन धर्म की विजयध्वजा फहराती कृतित्व को उजागर करने हेतु अभिनंदन समारोह हुई जन-जन के लिए दीपक की तरह उपयोगी व ग्रन्थ प्रकाशन का आयोजन प्रसन्नतादायी व बनें।
प्रशंसनीय है। साध्वी-रत्न, प्रवर्तिनी महोदया आशु कवयित्री, सफल लेखिका व आगमों की गंभीर ज्ञाता
हैं। जिन्होंने संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण, काव्य, - साध्वी श्री मनोहरश्री
आगम आदि ग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन कर स्व(छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि)
जीवन को महकाया है एवं कई भव्य आत्माओं को
चमकाया है । जो सर्वदा निस्पृह, निरपेक्ष भाव से वीतराग तीर्थंकरों का यह वज्राघोष रहा है साधना के पथ पर अप्रमत्तता से बढती हई अपने कि आध्यात्मिक समुत्कर्ष जितना पुरुष कर सकता जीवन पप्प को ज्ञानादि सदगुणों के सौरभ व संयमहै उतना ही नारी भी कर सकती है। चतुविध संघ शील-सेवा-सद्भावना के विरल सौन्दर्य से मंडित में दो संघ नारी सम्बन्धित हैं, वे संघ के आधार कर पुण्य उपवन में सुरभि और सुषमा का विस्तार हैं । अपने आप में ऐसी मिशाल हैं जो अन्यत्र ढूढ़ने कर रही हैं। जिनमें ज्ञान की ललक है, दर्शन की पर भी नहीं मिल सकती। नारी वह शक्ति है, चन्द्र
दमक है, चरित्र की चमक है। शान्त, सरल, गुणकान्त मणि है जिसकी शीतल रश्मियों के आलोक गम्भीर प्रकृतिसम्पन्ना प्रवर्तिनी श्री सज्जनजीश्री म० में पुरुष न केवल पथ खोजता है अपितु दिव्य
वस्तुतः समाज की गौरव हैं। अभिनंदन की पात्र हैं। शक्तियों को जाग्रत कर जन से जिन पद तक पहुँचता अभिनंदन की इस बेला में मेरी भव्य भावना है कि है।
वे चिरंजीवी बनें एवं उनके जीवन सुमन की लुभाब्राह्मी सुन्दरी ने बाहुबली को जगाया, राजी- वनी महक का विस्तार कर सबको प्रेरित करने मति ने रथनेमी को प्रबोध दिया, कमलावती ने वाला यह अभिनंदन ग्रन्थ त्याग, श्र त, संयम, शील इषुकार को संबोधि दी, याकिनी महत्तरा ने हरि- की गौरव-गाथा बने । यही हार्दिक शुभकामना है। भद्र को सत्य मार्ग सुझाया, रत्नावली ने तुलसी को संत तुलसी बनाया । ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण
卐 हैं । उद्बोधिनी शक्ति नारी अपनी मृदुता, उदारता खण्ड २/२ For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International