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________________ आर्या सज्जन श्रीजी की काव्य-साधना. १६५ आर्या सज्जनश्री की काव्य - साधना का महत्वपूर्ण पक्ष है उसका संगीत तत्व | काव्य सर्जना का उद्देश्य पांडित्य प्रदर्शन न होकर अपने कथ्य को सहज, बोधगम्य और लोकभोग्य बनाना है । इसी उद्देश्य से कवयित्री ने पारम्परिक मात्रिक, और वार्णिक छन्दों का उपयोग न कर लोक जिह्वा पर तैरने वाली राग-रागिनियों का प्रयोग किया है । कतिपय राग शास्त्रीय राग हैं - यथा - भैरवी, मांड, सोरठ, आसावरी आदि । कतिपय राग लोक गीतात्मक राग हैं, जिनकी तर्ज है: पंथडो निहालूं रे, तावड़ो धीमी पड़ जा । नखराली ऐ मूमल, हालोनी झट, केसरिया कामणगारो आदि । अधिकांश रागें और तजें फिल्मी हैं यथाः - "आजा मेरी बरबाद, नगरी नगरी द्वारे द्वारे, राजा की आयेगी बारात, मन डोले मेरा तन डोले, जादूगर सैंया छोड़ मेरी बहिया, जब तुम ही चले परदेस, बिगड़ी बनाने वाले, सारी-सारी रात तेरी याद, जिया बेकरार आदि । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कवयित्री सज्जनश्री की काव्यसाधना में उनका आध्यात्मिक अनुभव समाया हुआ है । भावुक भक्त और लोक संगीतकार के रूप में आप अपनी काव्य-स्थली में प्रतिठित प्रतीत होती हैं । नारी को कोमलता, मधुरता, भावुकता और विह्वलता का करुण सौन्दर्य और मन को दिव्य आलोक से मंडित करने वाला माधुर्य पाठक को और श्रोता को एक साथ अभिभूत करता चलता है । कवयित्री अपनी भक्ति सुरभि जन-जन को सदा बांटती रहे यही मंगल कामना है । --सी, २३५ - ए, त्रयानन्द मार्ग, तिलकनगर, जयपुर -४ - सज्जन वाणी १. ईर्ष्यादि दुर्गुण अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों के मूल कारण हैं । जब तक ये दुर्गुण नहीं निकलते हैं तब तक औषधियाँ कुछ नहीं कर सकती । २. बड़े-बड़े डाक्टरों का अभिमत है कि मानसिक असन्तुलन समस्त व्याधियों का प्रमुख कारण है । ३. मनुष्य जैसा सोचता है, चिन्तन करता है, उसी के अनुरूप वह बनता है अतः सोच और चिन्तन विशुद्ध, आदर्शमय होने आवश्यक हैं । इसके लिए उत्तम महापुरुषों, सन्त महर्षियों द्वारा रचित ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिए । ४. कहा जाता है कि ज्ञान सीखने पर ही आता है किन्तु यह बात एकान्त नहीं । क्योंकि अन्तर् स्फुरण भी एक वास्तविक कारण है । यह नहीं हो तो मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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