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________________ १६० खण्ड १ | जीवन ज्योति : कृतित्व दर्शन से मधुर हैं। आपकी कोमल और माधुर्य भावना कविता के स्वरों में फूट पड़ी है । 'ज्ञान पुष्पांजलि', 'श्री जैन गीतांजलि', 'सज्जन-विनोद' आदि नाम से आपकी कविताओं के लघु संकलन प्रकाशित हैं। आपकी समस्त रचनाओं का एक प्रतिनिधि संग्रह प्रकाशनाधीन है। आपकी कविताएँ प्रधानतया मुक्तक रूप में हैं। इन्हें पद या गीत कहना अधिक उपयुक्त होगा। इन मुक्तकों के दो प्रधान भेद किये जा सकते हैं। स्तुतिपरक मुक्तक तथा वैराग्यप्रधान उपदेशात्मक मुक्तक । स्तुतिपरक मुक्तक के दो प्रकार हैं-एक जिनस्तुति या तीर्थंकर-भक्ति और दूसरा गुरु-स्तुति या गुरु भक्ति । जिन-स्तुति में सामान्य रूप से उन जिनेन्द्र भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा-भक्ति व्यक्त की गयी है, जिन्होंने राग-द्वेष पर विजय प्राप्त कर अखण्ड आनन्द स्वरूप मुक्ति प्राप्त कर ली है। जो अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त बल-पराक्रम के धारक हैं, जो क्षमासागर, करुणासागर और परम दयालु हैं। जिनका सत्संग और सान्निध्य अपार शांति, असीम सुख और दिव्य आनन्द प्रदान करता है। वे जिनेन्द्र भगवान् जिन्होंने लोक-कल्याण के लिए तीर्थ की स्थापना कर धर्म-चक्र प्रवर्तन किया है, वे "तीर्थंकर" कहलाते हैं। ऐसे तीर्थकर २४ माने गये हैं। इनकी स्तुति और महिमा में लिखे मये स्तवन "चौबीसी" नाम से प्रसिद्ध हैं। देवचन्द्रसूरि, यशोविजय, आनन्दघन जैसे अध्यात्म-महापुरुषों की 'चौबीसी संज्ञक' रचनाएँ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। साध्वी सज्जनश्रीजी ने भी २४ तीर्थंकरों की स्तुति में 'चौबीसी' लिखी है। इसमें आपके हृदय की विनय और समर्पण भावना अभिव्यक्त हुई है। कवयित्री इनके दर्शन, पूजन और मिलन के लिये उत्कंठित है : “वीर प्रभु दर्शन दो बिन दर्शन दुःख पाऊँ... (स्थायी) मुझ को दर्शन लगता प्यारा, जिससे दुःख जाता है सारा, नित उठ मन्दिर जाऊँ..." ||१॥ मोहन मुख के दर्शन जिस दिन, भगवन् होते नहीं हैं उस दिन, दिन भर मैं पछताऊँ....." ॥२॥ जिस दिन दर्शन करती तेरा, जीवन धन्य मानती मेरा, अनुपम सुख को पाऊँ.....।।३।। प्रतिदिन दर्शन होवे मुझको, सदा करूं मैं वन्दन तुझको, ___"सज्जन" तव यश गाऊँ"" ॥४॥ तीर्थकर स्तुति में कवयित्री ने भगवान् महावीर, पार्श्वनाथ एवं नेमिनाथ के प्रति विशेष पद लिखे हैं। महावीर जयन्ती एवं महावीर निर्वाण दिवस (दीपावली) के प्रसंग पर भी कई गीत लिखे हैं, जिनमें महावीर की जीवन-साधना से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाने का आह्वान है। नाम-स्मरण पर बल देते हुए कवयित्री कहती है "वीर-वीर मन रट ले, प्रभु वीर हरें सब पीर, जिनका नाम है महावीर, उनका आभारी जग सारा ।।१।। उनके तेजस्वी प्रभामण्डल को देखकर कवयित्री उस पर मुग्ध हैं : जब से देखी है अदा, उस प्यारे की, सूरत आँखों में बसी, दुनिया के उजारे की ॥१॥ है दिल में तमन्ना फखत, 'सज्जन' को इतनी, सूरत दिखला दे कोई, जीवन के सहारे की ॥२॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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