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________________ १५० खण्ड १ | जीवन ज्योति बहुत ही शांत वचनों व नम्र भाव से सारी बातें समझाई । मैं उनकी शांतमूर्ति व नम्रता के भावों को आज भी स्मरण करता हूँ तो नतमस्तक हो जाता हूँ उनके शांत स्वभाव की अभिव्यक्ति पर। आज के युग में प्रायः यह देखने में आता है कि लोग जिन मन्दिर के प्रांगण में ही एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं व कई लोग व्यावसायिक या गृह सम्बन्धी चर्चाएँ भी करते हैं। हमें उपरोक्त दृष्टांत से इस विषय पर गम्भीरता से सोचना चाहिए । - उत्तमचन्द बडेर (मन्त्री-श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ सघ, जयपुर) अत्यन्त आनन्द का विषय है कि आगम ज्योति आशु कवयित्री प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म० सा० का दीक्षा स्वर्ण जयन्ती अवसर पर अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। श्वे० मूर्तिपूजक संघ में श्रमणी का यह अभिनन्दन ग्रन्थ सर्वप्रथम है । इससे पूर्व किसी भी साध्वीजी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है व खरतरगच्छीय श्रमण-श्रमणी परम्परा में तो सर्वप्रथम ही अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है जो प्रथम बार का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करवाने का लूणियां परिवार जयपुर को व अभिनन्दन समारोह मनाने का जयपुर संघ को सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। वास्तव में पूज्या प्रवर्तिनी श्री सार्वजनिक अभिनन्दन के योग्य हैं। पूज्या प्रवर्तिनीश्री के जीवन को निकटता व लम्बे समय से देखने को मिला। उनके समग्र जीवन में एकरूपता है। क्योंकि जयपुर श्री संघ का सौभाग्य रहा कि सदा साधु भगवन्त व साध्वीजी म. सा. का सुसंयोग मिलता रहा-पू० प्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी म. सा. (जो प्रवर्तिनी श्री की दादागुरुणीजी हैं) ने अपने जीवन के साधना काल के अन्तिम क्षण जयपुर में ही बिताये व पुण्यश्रीजी म. सा. की शिष्या व प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म. सा. की गुरुवर्याश्री प्रतिनीधी ज्ञानश्रीजी म. सा. भी अपनी शारीरिक परिस्थिति के कारण वर्षों जयपुर में विराजी। पू. ज्ञानश्रीजी म. सा. व पू. उपयोगश्रीजी म. सा. से प्रभावित हो युवावस्था में संसार के मोह-माया परिजाल के चक्रव्यूह से निकलकर संयम जीवन स्वीकार कर सर्वस्व गुरु चरणों में समर्पित किया। दीक्षित हो आपश्री गुरु सेवा में संलग्न हो गयीं, समाज सेवा में तत्पर रहती हुईं गुरु सेवा में २२ चातुर्मास जयपुर में किये। लम्बे समय तक एक स्थान पर रहते हये कभी भी आप परेशान नहीं हुई सदा एक भावों में अपने कर्तव्य पथ पर डटी रहीं। कभी किसी के लिये अश्रद्धा का कारण नहीं बनीं । वर्षों तक एक स्थान पर रहना और लोगों की श्रद्धा को घटाना नहीं बल्कि निरन्तर बढ़ाना ये इनकी जीवन की महत्वपूर्ण विशेषता रही है। आपश्री का मार्गदर्शन जयपुर संघ को सदा मिलता रहा । आपकी ही प्रेरणा से शिवजीराम भवन का निर्माण हुआ था पुनः आपकी ही प्रेरणा से पुनर्निमाण का कार्य प्रारम्भ हुआ व्याख्यान हॉल का नूतन रूप से निर्माण हो रहा है। आपकी ही की सत्प्रेरणा से नायला हवेली भी खाली करवा उपाश्रय का रूप दिया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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