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________________ खण्ड १ | व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण १३६ घेरती हुई रेखा जो हृदय रेखा से समागम करने जैसी है (मिली नहीं है-कान्जाइन्ड) तथा शनि पर्वत पर शाखाओं के रूप में बँटती है, जीवन रेखा एवं मस्तिष्क रेखा का एक दूसरे से मिलने की ओर अग्रसरता अन्तर्ज्ञान (इन्ट्यूशन) रेखा की विद्यमानता आपको जनसमूह को विपत्तियों से उद्धार करने वाला उद्धारक, सामाजिक चेतना जगाने एवं उसका सफल नेतृत्व करने के लिए ही पृथ्वी पर जन्म लेने का प्रयोजन साबित करता है। (Saviour to protect masses from disaster) __आपकी शिष्याओं पू. शशिप्रभाश्रीजी, प्रियदर्शनाश्रीजी, दिव्यदर्शनाश्रीजी, सम्यग्दर्शनाश्रीजी आदि को देखकर स्पष्ट भान होता है कि पारस पत्थर तो लोहे को सोने में परिवर्तन कर देता है मगर पूज्या प्रवर्तिनीजी ने तो उनके सान्निध्य में रहने वाली समस्त साध्वियों को ही 'पारस' में परिवर्तित कर दिया है। आपकी सरलता, विनम्रता और मौन साधना को निहार कर श्रीसूत्रकृतांग की यह सूक्ति स्मरण हो जाती है सारद सलिलं व सुद्ध हियया, विहग इव विप्पमुक्का, वसुन्धरा इव सव्व फासविसहा ॥-२-२-३८ साध्वीजी का जीवन शरदकालीन नदी के समान निर्मल है। वे पक्षी की तरह बन्धनों से विप्रमुक्त और पृथ्वी की तरह समस्त सुख-दुखों को समभाव से सहन करने वाले हैं। पूज्या प्रवर्तिनीजी के जीवन की निर्मलता के विषय में श्री बनारसीदास की यह पंक्तियाँ भी स्मरण हो जाती हैं जैसे निसि बासर कमल रहे पंक ही में, पंकज कहावे पै न फंसे दिग पंक है, भवपंक में, कमलवत इनका जीवन है। पूज्या प्रवर्तिनीजी का जैन आगम साहित्य (मूल, नियुक्ति, चूणि, भाष्य) का सतत् अध्ययन एवं साहित्य सृजन, विश्वशान्ति, प्राणीकल्याण एवं मानवोत्थान के लिए है। ___ अस्सी वर्ष की वृद्धावस्था एवं शरीर रुग्ण होते हए भी आप श्रीसंघ को श्रीवीतराग देव के पथ पर ले जाने, धार्मिक एवं मानव के नैतिक उत्थान के लिए सतत् प्रयत्नशील है। जयपुर श्रीसंघ का अहोभाग्य है कि उन्हें पूज्या प्रवर्तिनीजी के अभिनन्दन का अवसर मिला है। पूज्या प्रवर्तिनीजी का गुणानुवाद-धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों से विभूषित इस महान मनीषी का ही गुणानुवाद नहीं है यह जैनधर्म, जैन सांस्कृतिक जागरण, धार्मिक प्रवृतियों, सम्यक्त्व, साहित्यिक विकासोन्नयन एवं जैन ऐक्य के गुणानुवाद का प्रसंग है। जिनशासन देव ऐसे शान्तमूर्ति, गम्भीरता के प्रतीक, आत्मीयता की खान, पीयूषवाणीदाता को चिरायु बनावें । पूज्या प्रवर्तिनीश्री को कोटि-कोटि वन्दन, शत-शत अभिनन्दन । 0 श्रीमती स्नेहलता चौरड़िया आगममर्मज्ञा परमपूज्य गुरुवर्या आशुकवयित्री प्रवर्तिनी महोदया श्री सज्जनश्रीजी म. सा. जिनकी कीर्ति का डंका सम्पूर्ण भारत देश में बज रहा है। आपश्री के उत्तम श्रेष्ठ गुणों की महत्ता का वखाण प्रत्येक व्यक्ति अपने मुखारबिन्द से किये बिना नहीं रह सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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