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खण्ड १ | जीवन ज्योति
से बात करती हैं धीरे व मधुर आवाज से । महाराजश्री के जीवन में वाणी के गुण पूर्ण रूप से विद्यमान है। आवश्यकतानुसार बोलती हैं, गर्वरहित बात करती हैं, कभी भी तुच्छ शब्दों का प्रयोग नहीं करती हर समय उच्च भाषा का व्यवहार करती हैं। तथ्य सत्ययुक्त बोलती है, तोल कर बोलती है सीमित शब्दों में बात को पूरी कर देती हैं, सदा सत्य बोलती हैं । गुरुवर्याश्री की वाणी में मधुरता होने के कारण छोटे-बड़े सभी खुल जाते हैं, किसी को संकोच या भय नहीं होता है।।
व्यवहार में नम्रता-आपके जीवन की विशेषताएँ हैं कि विद्वत्ता होते हुए भी अहम् अहंकार का अर्जन नहीं है । बड़े व छोटों के साथ, पठित अपठित के साथ अमीर-गरीब आदि सभी के साथ नम्र व्यवहार करती है। बड़ों के सामने सदा झुकी ही रहती हैं कभी भी बड़ों का अपमान नहीं किया । बड़े कैसी भी आज्ञा दें उस आज्ञा को तहत्ति कर उसी समय स्वीकार करती हैं । इनके नम्र व्यवहार से हर व्यक्ति प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। गुजराती कहावत है नमे जो सहुने गमे अपनी नम्रता के कारण ही सभी के लिये आकर्षण केन्द्र बने हुए हैं।
हृदय में पवित्रता-आपका हृदय पूर्णरूप से पवित्र है, क्रोध, मान, माया, लोभ की गन्दगी इनके हृदय को किंचित् भी स्पर्श नहीं कर पायी, सदा समता अमानी अमायी निर्लोभिता आदि गुणों की सुगन्ध से हृदय में पवित्रता के लिये हुये हैं।
मुख पर सौम्यता-चेहरा सदा फूलों की तरह मुस्कराता रहता है। किन्हीं क्षणों में देखें किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में देखें लेकिन चेहरे की सौम्यता का लोप नहीं होता है।
. आपश्री के बारे में क्या लिखू क्या नहीं लिखू ? इतने गुण हैं उसकी लेखनी करने में मेरी कलम भी असमर्थ है। जब अभिनन्दन ग्रन्थ के विषय में बात चली तो मन मयूर नाच उठा और अन्तर् से आवाज आई कि हाँ ऐसी महान् विभूति का अभिनन्दन ग्रन्थ अवश्य निकलना चाहिए। वो बीज वृक्ष के रूप में साकार हुआ। वह दिन आज धन्य बना। मैंने आपश्री के बारे में कुछ लिखना चाहा लिखा, कुछ त्रुटियाँ हो सकती हैं ध्यान न दें। आपश्री का आयुष्य दिनों-दिन बढ़ता जाये। अपने संयम-जीवन को पवित्र बनाती जाये। जुग-जुग जिओ शासन की सेवा करती रहो..." ।
हमारे ऊपर आपश्री का वरद हस्त सदा रहे यही गुरुदेव से प्रार्थना है। जब तक सूरज-चाँद रहेगा गुरुवर्याश्री का नाम रहेगा। इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ"""" ।
व्यक्ति, व्यक्ति को नहीं देखता उसकी सरलता को देखता है। व्यक्ति, व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता उसके गुणों से प्रभावित होता है। व्यक्ति, व्यक्ति से आकर्षित नहीं होता उसकी वाणी से आकर्षित होता है । व्यक्ति, व्यक्ति का अभिनन्दन नहीं करता है उसके व्यक्तित्व का अभिनन्दन करता है।
0 साध्वी शुभदर्शनाजी म. सा. (सुशिष्या परमपूज्या प्रवतिनी साध्वी श्री सज्जनश्रीजी म. सा.) बीज की ओट में वट वृक्ष का अस्तित्व छिपा है, तथा सीप में चमचमाते मोतियों का हार रहता है। बादलों की ओट में शीतल लहरों का सागर छिपा है, उसी प्रकार पुरुषों में महापुरुषों का व्यक्तित्व छिपा रहता है। यह व्यक्तित्व जब निमित्त पाकर उभरता है तो समाज उसकी महत्ता का मूल्यांकन करता है।
ऐसे ही महापुरुषों की श्रृंखला में अपने आपको जोड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सद्ज्ञान सरिता, अनन्त ज्ञान मंजूषा, आगमवेत्ता आशुकवयित्री मम जीवन, उपकारिणी प्रवर्तिनी महोदया "यथा नाम तथागुण" पूज्य सज्जनश्रीजी म. सा. ।
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