SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड 1 | व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण 121 यश और कीर्ति की भावना से परे साधना में लीन महाराज साहब सज्जनश्रीजी का जीवन दीर्घायु हो और सम्पूर्ण जैन समाज को निरन्तर अपने आदर्श से प्रभावित करती रहें, ऐसी मेरी मंगल कामना है। Cश्री थानमल आंचलिया, गंगाशहर (बीकानेर) मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परम विदुषी गुरुवर्या सज्जनश्रीजी महाराज की ८१वीं वर्षगाँठ के पावन अवसर पर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है / महाराज सा० का जन्म लूनिया परिवार में हुआ और हमारे परिवार को यह परम सौभाग्य मिला है कि-लूनिया परिवार के साथ पिछली तीन पीढ़ियों से प्रगाढ़ सम्बन्ध रहे हैं। मेरे पिताजी श्रीहीरालालजी आंचलिया थली प्रदेश के जाने-माने तत्वज्ञ विद्वान थे। उनका सम्बन्ध जयपुर नगर के श्रीमान गुलाबचन्दजी लूनिया के साथ इसी आधार पर बना था कि श्रीमान लूनियाजी भी जैन दर्शन के जाने-माने तत्वज्ञ श्रावक रहे हैं। इन दोनों ही भक्त श्रावकों ने जैन तत्वों की अनेक पुस्तकें प्रकाशित करायीं और अधिक से अधिक लोगों के हाथों में बिना कोई मूल्य लिए पहुँचाई। तीन पीढ़ी पहले का ये सम्बन्ध निरन्तर चलता गया और मेरी पुत्री सौ० रत्ना का विवाह श्रीमान केसरीचन्दजी लूनिया के सुपुत्र श्रीपुखराजजी लूनिया के साथ जब हुआ तो दोनों परिवारों में अटूट सम्बन्ध स्थापित हो गये / इस प्रकार दोनों परिवारों ने तेरापंथ संघ के पाँचवे आचार्य पूजनीय मघवागणी से लेकर वर्तमान आचार्य श्री तुलसी गणी तक निरन्तर सेवा का लाभ उठाया है तथा निरन्तर लाभ ले रहे हैं। पूजनीया सज्जनश्रीजी महाराज सा. अत्यन्त सरल हृदया एवं दयालु प्रकृति की हैं। आपके दर्शन मात्र से मन में सात्विक प्रेरणा जाग उठती है। यह एक शुभ संयोग है कि आपश्री ने जैन शासन के तेरापंथ सम्प्रदाय में जन्म लिया / और आपका विवाह स्थानकवासी सम्प्रदाय के गोलेछा परिवार में हुआ किन्तु तत्वों की खोज करते-करते आपने अपना वैराग्य जीवन खरतरगच्छ संघ की आर्यारत्न बनकर प्रारम्भ किया / जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों में आपने मात्र अध्यात्म की ओर ही ध्यान बनाए रखा / किसी साम्प्रदायिक संकीर्णता को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया। इस प्रकार जैन शासन की तीन पवित्र धाराओं का संगम आपश्री के पास हुआ है / जैन समाज का सौभाग्य है कि वह आपका अभिनन्दन कर रहा है वस्तुतः आपका अभिनन्दन त्रिवेणी संगम की उपासना है, जैन एकता का अभिनन्दन है और जैन संस्कृति के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अवसर है / आपश्री के चरणों में मेरा कोटि-कोटि अभिनन्दन / / 0 श्रीमती रत्ना लूणिया हम अभिनन्दन कर रहे हैं:-पुण्यशीला, करुणामूर्ति, आगम ज्योति, संयम, साधना और दर्शन की प्रतिमा, गुरुवर्या प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज का। जिस प्रकार आने वाली घटनाओं का संकेत बहुत पहले ही समय हमें दे देता है, उसी प्रकार महाराज साहब के दिव्य जीवन का आलोक उनके जन्म के साथ ही फैलने लगा था / समय के उन संकेतों को उस समय सम्भवतः कोई पकड़ नहीं पाया हो, किन्तु जब होनहार प्रतिभा के कोमल पत्रों की स्निग्धता का स्पर्श माता-पिता की दृष्टि ने किया तो वे समझ गये कि उनकी लाड़ली बेटी कोई असाधारण प्रतिभा है। बात अस्सी बरस पहले की है / जयपुर नगर के स्वनामधन्य सेठ श्री गुलाबचन्दजी लूणिया खण्ड 1/16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy