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व्यक्तित्व-परिमल
अनुभव-संस्मरण एक संस्कृत कवि ने कहा है :
हे पथिक ! कुमुद वन की सुषमा और सौरभ का वर्णन तुम क्यों करते हो ? उसका वर्णन तो वहां फूलों पर सतत मंडराते, रसपान करते हुए भ्रमर स्वयं ही मस्त गुंजारव के मिष निरन्तर करते ही रहते हैं। हाँ, तुम तो सिर्फ उनकी गुंजन की भाषा सुनो, समझो."
"किसी व्यक्तित्व के विषय में जानना समझना हो तो उसके मित्र, परिचित, सम्बन्धी और सेवा में रहने वाले निकट व्यक्तियों की बात सुनो, वे ही उसके व्यक्तित्व का यथार्थ स्वरूप बतायेंगे और वही उसका विश्वसनीय यथार्थ परिचय होगा।
पूज्य प्रवतिनी सज्जनश्री जी महाराज के अन्तरंग जीवन का अनुभव की आंखों से देखा यथार्थ और स्मतियों की स्याही से लिखा सच्चा चित्र यहाँ प्रस्तुत है । उनके अत्यन्त निकट आत्मीय भाव से सतत सामीप्य साधने वाले मनिजन, शिष्याएँ तथा श्रावक वर्ग की अपनी शब्दावली में....
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