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________________ १०६ खण्ड १ | जीवन ज्योति जो आज के दूषित वातावरण में रहते हुए भी अपने दान, त्याग और धर्माचरण जैसी शीतल सुगन्धित भावनाओं को नहीं छोड़ते। जयपुर निवासी सेठ दीवान श्री नथमलजी गोलेछा का जीवन चन्दन की तरह था, जिसमें धर्मानुराग, त्याग, दान भावना को शीतल सुगन्ध समाई हुई थी। वे अपने राज्य कार्य भार के तमाम जंजालों में उलझे रहकर भी दूसरों के कल्याण हेतु हर तरह का सहयोग देते रहते थे। जैन समाज के वे जाने-माने समाज सेवकों में से एक थे । तुम मित्र जन की ज्योति प्रीति की शक्ति प्रखर, तुम मन, बुद्धि, कर्मों का समन्वय करते थे सत्वर । तुम मरुत मान थे ज्योतित पंखों की उड़ान भर, ले जाते थे आत्मा की आकांक्षाओं को ऊपर । एक समय की बात है कि आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज साहब के गुरु भाई ने अभिग्रह ले रखा था कि अमुक बात होने पर ही अभिग्रह खोलूंगा और कई दिनों तक उनका अभिग्रह फला नहीं तब आपने अपनी मूंछ का बाल तोड़कर दे दिया और उनका अभिग्रह फल गया। ऐसी बातें बहुत कम सुनने को मिलती हैं । आपके पाँच पुत्र और एक पुत्री थी। __आपकी पुत्री का नाम उमराव बाई था। (भुवा सा उमराव वाई) । आप बचपन से ही बड़े लाड़-प्यार में पली; शान्त, सरल स्वभाव की थी । सौभाग्य रेखा तो आपको बचपन से ही रही । आपका विवाह कोटा के नगर सुप्रसिद्ध सेठ दीवान रायबहादुर श्रेष्ठिवर्य श्री केसरी सिंहजी बाफना के साथ हआ था। आप मूर्तिपूजक थे । धर्म में आपकी गहरी आस्था थी। सेठ श्री सौभाग्यमलजी आपके तृतीय पुत्र थे-आप इतने भाग्यशाली थे जिन्हें दीवानश्री नथमलजी जैसे पिता मिले । आपका विवाह जोधपुर दीवान की सुपुत्री से हुआ। आपकी धर्म में बडी रुचि थी, साथ में दानवीर थे । आप अष्टमी चौदस को रात्रि भोजन व हरी के सौगन्ध रखते थे । आपके तीन पुत्र थे । बड़े पुत्र का नाम श्री कल्याणमलजी, दूसरे पुत्र का नाम श्री सरदारमलजी तथा तीसरे पुत्र का नाम श्री राजमलजी था। श्री सरदारमलजी अपने ताऊजी के यहाँ गोद चले गये थे। श्री कल्याणमलजी गोलेच्छा दीप्त ओज बल, तप बल आज करें हम धारण, शुद्धमना हम करें मनों से शोक निवारण । तुम चिर सहिष्णु हम सहन कर सके धीर शांत बन, पूर्ण बनें हम सौम्य, सत्य पथ करें आप से धारण । ___आपका बाल्यकाल का ज्यादातर समय कोटा में आपकी बुआ सा. के पास व्यतीत हुआ था। आपकी बुआ के सन्तान न होने के कारण आप पर उनका अत्यधिक स्नेह था। आपका विवाह प्रसिद्ध जैन तेरापंथ समाज के वरिष्ठ श्रावक श्री गुलाबचन्दजी साहब लूणिया जौहरी की सुपुत्री सज्जनकुमारी के साथ हुआ, जो दीक्षा लेकर अब सज्जनश्रीजी महाराज साहब के नाम से विख्यात हैं। आपने निःसन्तान होने के कारण अपने छोटे भाई श्री राजमलजी के पुत्र विजयकुमार को पुत्र समान माना तथा आपको अपने पौत्र अजयकुमार पुत्र श्री विजयकुमार गोलेछा एवं पुत्रियाँ वन्दना तथा नमीता से असीमप्रेमथा । आपके छोटे भाई श्री राजमलजी ने आपके साथ रहकर आजीवन आपकी सेवा की। ___शादी के बाद आप कुछ वर्ष तक अपनी धर्मपत्नी के साथ अपनी बुआ सा के यहाँ कोटा रहे । वहीं से आपकी धर्मपत्नी को वैराग्य भावना आ गयी और उन्होंने दीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने आपसे दीक्षा की आज्ञा माँगी और आपने उनका धर्म के प्रति लगाव देखकर आज्ञा प्रदान की। आपने अपनी पत्नी की दीक्षा के अवसर पर अपने निवास स्थान गृह (देरासर) में भगवान ऋषभदेव की भव्य प्रतिमा की स्थापना करवाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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