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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति && विवाहोपरांत भी प्रवर्तिनीश्रीजी सांसारिक बन्धनों, धन-वैभव की सुविधाओं, गार्हस्थ्य जीवन के मोहों में नहीं रम सकीं। जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है ? प्राणी पृथ्वी पर क्यों जन्म लेता है उसका वास्तविक लक्ष्य क्या है ? आदि -आदि प्रश्न आपके अन्तर् को निरन्तर सांसारिक जीवन से उदासीन तथा आध्यात्मिक जीवन की ओर उन्मुख करते रहे । अंततः आपने सांसारिक मोहबन्धन से छुटकारा पाने का दृढ़ निश्चय कर अपने भुवासास श्रीमती बाफना के सहयोग से सन् १६४० में जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ में दीक्षा ग्रहण करली । निर्बन्ध निर्लिप्त जीवन का शुभारम्भ हो गया । उस समय आपकी आयु मात्र ३२ वर्ष थी । तब से आज ८१ वर्ष की अवस्था तक आप कर्मठ तपस्विनी, साधिका, शास्त्रज्ञा, आगमवेत्ता संघ प्रवर्तिनी, गुरु सेविका और गुरुवर्या के रूप में ख्याति प्राप्त हैं । सन् १९१५ में श्री केशरीचन्द्र जी का जन्म हुआ, जिनके चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं । सन् १६१७ में दूसरी पुत्री कस्तूरीबाई का जन्म हुआ तथा १९२२ में दूसरे पुत्र पूनम चन्द जी जन्म हुआ । जिनके चार पुत्रियाँ और एक पुत्र हुए । व्यापारिक प्रगति सेठ श्री गुलाबचन्द जी ने जयपुर के जौहरियों में अपनी सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी से शीघ्र ही विशिष्ट स्थान बना लिया था । भारत के अनेक जौहरीगण आपके आढ़तिये थे । वे समय-समय पर जयपुर आते और श्री गुलाबचन्द के घर पर ही ठहरते थे । श्री गुलाबचन्द जी के द्वारा किये हुए सौदों में आढ़तियों को भी अच्छी आय होती थी । विदेशियों से सम्पर्क आपने जवाह्रात का एक शो रूम जौहरी बाजार में खोला। थोड़े समय पश्चात् आपकी ख्याति सुनकर रियासत के दीवान सर मिर्जा इस्माईल ने अपने नाम पर नव निर्माणाधीन मिर्जा इस्माइल रोड़ पर एक वृहत भूमिखंड बहुत कम कीमत पर प्रदान किया । जिस पर आपने जवाहरात का एक भव्य शो रूम व सुरम्य उद्यान लगाया जो “लुनियों के बाग" के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अंग्रेजी जानने वाले गुमाश्ते रखे । व्यवसाय के क्षेत्र में जयपुर नगर में यह एक विशेष कार्य था । दो घोड़ों की बग्घी पर सेठ श्री गुलाबचन्दजी आया जाया करते थे । अपने ही घर पर आपने जड़िया सोने मीने का काम करने वाले कारीगर, बिंदाई व पुवाई का काम करने वाले पटवा, बेगड़ी, मोती पिराने वाले आदि रखे । उन सबका कार्य सेठसाहब की देख-रेख में ही होता था । आपके व्यापार में अच्छी वृद्धि हुई । धर्म का प्रभाव धनवृद्धि पर भी पड़ा । चतुर्दिक प्रतिष्ठा बढ़ने लगी । रियासत के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित अधिकारियों, जैसे- नवाब साहब, हाथीबाबू जी, मोतीलाल जी अटल, अमरनाथ जी अटल, गीजगढ़ ठाकुर कुशल सिंह जी, रूपसिंह जी राठौड़, अमर सिंह जी राठौड़, महाराजा माधोसिंह जी के साले साहब, खवास बालावक्ष जी, अंग्र ेज रेजीडेन्ट, आदि से अच्छा सम्पर्क था । जयपुर के प्रतिष्ठित जौहरियों से आपके पारिवारिक संबंध थे तथा उनके यहाँ सपरिवार आना-जाना होता था । सेठ श्री गुलाबचन्द जी ने एडवर्ड सप्तम के पुत्र पंचम चार्ज प्रिंस आफ वेल्स के दिल्ली आगमन पर हुए समारोह में जौहरी के रूप में सक्रिय भाग लिया। आपको प्रिंस ऑफ वेल्स और जार्ज पंचम तक से प्रशंसा पत्र प्राप्त हुए । महाराजा माधोसिंह जी के दरबार में आपकी भी कुर्सी लगती थी । दरबार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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