SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी आग्रह किया। दिव्यदर्शनाजी व तत्वदर्शनाजी ने वर्षीतप का पारणा भी सिवाणा में हो, ऐसी भावना व्यक्त की। आखिर उनकी चातुर्मास की विनती स्वीकार हई। आहोर से सिवाना की ओर चैत्र कृष्ण पक्ष में हम लोगों ने विहार कर दिया। तखतगढ़, सांडेराव आदि छोटे-छोटे नगरों में विशाल जिन-मन्दिरों के दर्शन करते हुए मोकलसर आये। संघ के आग्रह से ८-१० दिन रुके । फिर विहार करके सिवाणा पहुंचे। दोनों साध्वीजी के वर्षीतप का पारणा सानन्द सम्पन्न हुआ । जैन कोकिला पू. प्रवर्तिनीजी का देवलोक गमन प्रतिदिन के समान वैशाख शुक्ला ५ को भी व्याख्यान चल रहा था। इसी बीच जयपुर से तार आया पू. प्रवर्तिनीजी श्री विचक्षणश्रीजी के स्वर्गवास का समाचार लेकर । जानकर बहुत दुख हुआ, व्याख्यान-सभा, शोक-सभा बन गयी। जैनजगत की एक दिव्य तारिका का अवसान ! सर्वत्र ही शोक छा गया। शोक आखिर मोह का ही एक रूप है । मोह निवृत्ति वीतराग दर्शन से ही संभव है । अतः हमने सभी लोगों के साथ देव-वन्दन किये, मन्दिर गये । वीतराग चरणों में दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धा व शोक निवृत्ति की प्रार्थना की। दो दिन पश्चात गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। पू० प्रवर्तिनीजी के आदर्श जीवन और दिव्यगुणों पर प्रकाश डाला गया। सिवाणा चातुर्मास सं० २०३७ कुछ दिन के लिए हम लोग मिठोड़ावास-उम्मेदपुरा (सिवाणा का एक उपनगर) चले गये । वहाँ खरतरगच्छ के २४० घर हैं। ३०-४० लड़कियाँ धार्मिक अध्ययन करने हमारे पास आती थीं। पू० शशिप्रभाजी म. सा. आदि जो संघ में गये थे वे भी पालीताना से उग्रविहार करके ज्येष्ठ सुदी में ही सिवाणा वापस पधार गये । मिठोड़ावास वालों का भी चातुर्मास के लिए अत्यधिक आग्रह हुआ । अतः शशिप्रभाजी मसा० और सम्यग्दर्शनाजी म० को मिठोड़ावास का चातुर्मास करवाया गया तथा पूज्या गुरुवर्याधी एवं प्रियदर्शनाश्रीजी व दिव्यदर्शनाजी ने गाँव में चातुर्मास किया। व्याख्यान दोनों ही जगह होते थे । मिठोड़वाास में पू० शशिप्रभाजी व्याख्यान फरमातीं और गाँव में गुरुवर्याश्री। गुरुवर्याश्री के व्याख्यानों से कुमारी नीता (नारंगी) ललवाणी के मानस में वैराग्य भावना उद्बुद्ध हो गई। - पू० शशिप्रभाजी म.सा० के व्याख्यानों में मानसपरिवर्तन करने की अद्भुत शक्ति थी। उन्होंने मिठोड़ावास के लोगों के मन में पड़ी हुई तड़ों (भेदरेखाओं) को दूर कर दिया । मनोमालिन्य समाप्त हो गया । जो काम बड़े-बड़े दिग्गज विद्धान मुनि भी नहीं कर पाये, वह आपने कर दिखाया। पूज्या गुरुवर्या के आशीर्वाद से आपकी वाणी में भी एक चमत्कार पैदा हो गया। आपश्री के व्याख्यानों से १० वर्षीय कुमारी नारंगी उर्फ निशा तथा लक्ष्मी भंसाली-दो लड़कियों के मानस में संस्कारों के बीज प्रेरणा और प्रवचन के अमृत सिंचन से अंकुरित हुए । उन पर वैराग्य, समत्व व निवृत्ति के सुमन भी खिलने लगे । वैराग्य के बीज अंकुरित हो गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy