________________
खण्ड १ | जीवन ज्योति
होने के लिए उपवास प्रारम्भ किये । प्रारम्भ में भाव तो पचोले का ही था, किन्तु शासनदेव की कृपा से मासक्षमण ही हो गया। पर्वाधिराज पर्युषण की पूर्णाहुति पर ही मासक्षमण की पूर्णाहुति थी।
पर्णाहति पर अठाई महोत्सव हआ। पूजा पढ़ाने के लिए यतिवर्य श्री रूपचन्दजी एवं जयपुर से नागौरीजी पधारे। शंखेश्वर के अट्ठम (तेले) काफी हुए। पूजा-भक्ति, आंगी प्रभावना, स्वामीवात्सल्य का भरपूर लाभ अजमेर के खरतरगच्छ ने दिल खोलकर लिया । तप-दान-पूजा का रंग बरसने लगा।
__ स्थानकवासी सम्प्रदाय के पू० श्री नानालालजी म० सा० का चातुर्मास भी अजमेर ही था। वे स्वयं ही एक बार सुख-साता पूछने पधारे । इससे दोनों सम्प्रदायों में स्नेह की वृद्धि हुई।
इधर जयपुर से समाचार मिले कि पू. प्रवर्तिनी विचक्षणश्रीजी के केसर गाँठ में दर्द बहुत बढ़ । गया है और खून आने लगा है। विचित्रता यह थी कि इस बीमारी में अन्य लोगों के तो दुर्गन्धयुक्त रक्तपीव रिसता है किन्तु पूज्या प्रवर्तिनीजी के तो एकदम शुद्ध रक्त रिसता था। उधर अनुयोगाचार्यजी की निश्रा में बाड़मेर से पालीताना का छःरी पालित संघ निकल रहा था जिसमें गुरुवर्याश्री को सम्मिलित होने का अनुयोगाचार्यजी का आदेश था।
दुविधापूर्ण स्थिति हो गयी। इधर पूज्य प्रवर्तिनीजी के स्वास्थ्य की चिन्ता, उधर अनुयोगाचार्य जी का आदेश । क्या किया जाय ? गुरुवर्या की इच्छा थी कि पहले जयपुर जाकर पू. प्रवर्तिनीजी की दशा स्वयं आँखों से देखू, इसके बाद अनुयोगाचार्यजी के आदेश का पालन करूं। लेकिन शारीरिक स्थिति ऐसा उग्रविहार करने की नहीं थी।
आखिर शशिप्रभाश्रीजी ने कहा-आप मुझे आदेश फरमायें ताकि मैं स्वयं जयपुर जाकर पू० प्रवर्तिनीजी की सारी स्थिति देख आऊँ। पूज्याश्री ने आदेश फरमाया और शशिप्रभाश्रीजी व दिव्यदर्शनाश्री जी ने जयपुर के लिये विहार किया।
उस समय जयपुर में विचक्षण भवन का उद्घाटन व हेमलता का दीक्षा समारोह था। दोनों में ही साध्वीजी सम्मिलित हुईं, ५-६ दिन रुककर पुनः अजमेर लौट आई । वहाँ से संघ में सम्मिलित होने के लिए ६ साध्वीजी ने विहार किया।
हम लोग ब्यावर से सोजत होकर पाली प्रस्थान कर रहे थे कि बीच में ही गुरुवर्याश्री के पाँवों में दर्द होने लगा, मुश्किल से पाली पहुँच सके । तीन-चार दिन रुककर मालिश करवाई, दर्द कुछ कम हुआ। विहार कर दिया। एक ही मंजिल पहुंचे कि दर्द फिर शुरू हो गया, जैसे-तैसे गुन्दोज पहुँचे । दर्द बहुत बढ़ गया, घुटनों में सूजन आ गई, उठना-बैठना भी मुश्किल हो गया। गुन्दोज में ही स्थिरता करनी पड़ी। संघ के लिये शशिप्रभाजी म. सा. और सम्यग्दर्शनाजी को विहार करवा दिया, वे लोग गांधव ग्राम में जाकर संघ में सम्मिलित हो गये ।।
पूज्यवर्याश्री आदि कुछ दिन गुन्दोज में रहे । यहाँ जिनमन्दिर भी हैं और श्रावकों के १५-२० घर भी। सभी अच्छे श्रद्धावान हैं। यहाँ रहकर आयुर्वेदिक उपचार कराया, मेथी आदि अधिक मात्रा में ली, दर्द बिल्कुल समाप्तप्राय हो गया तब विहार करके वादनवाड़ी, अदूपुरा होते हुए जाहोर आये। कष्ट और पीड़ा के क्षणों में भी गुरुवर्या में अपार सहनशीलता और तीर्थवन्दना की उमंग देखकर लगता है असातावेदनीय भी उनके सत्संकल्पों के समक्ष हार सा गया।
होली के दिन निकट थे अतः संघ के आग्रह से ८-६ दिन रुके । व्याख्यानों से प्रभावित होकर संघ ने चातुर्मास की विनती की। सिवाणा से भी ५-७ व्यक्ति चातुर्मास की विनती लेकर आ गये, बहुत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org