SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि उनके जीवन का श्वासोच्छ्वास है। आपकी वाणी गहन | “साधक का जीवन घट एक ही दिन में नहीं भर से गहन विषयों को सरल बना देती है। प्रवचनों में ऐसी | जाता बल्कि क्षण-क्षण जागृत रहने से धीरे-धीरे वृद्धि को तारतम्यता होती है कि मानों कल कल करता कोई शांत । प्राप्त होता है।" निर्झर अपनी बेजोड़ ताल व लय के साथ प्रवाहित हो रहा आप श्री चेले बनाने, गुरु धारणा करवाने व तथा हो। तत्त्व का कोई भी कोना साधना का कोई भी पक्ष, कथित धार्मिक ठेकेदारों एवं संकीर्ण सड़ी-गली मान्यताओं जीवन का कोई भी दृष्टिकोण आपकी प्रज्ञा से अछूता नहीं के प्रवल विरोधी हैं, यह आपका क्रान्तद्रष्टा रूप है। रहता। वर्तमान श्री संघों में पिछले ३-४ दशकों में जो विषमताएँ, अराजकताएँ, सम्प्रदायवाद, परस्पर विरोधी एक बार गुरुदेव के पास विद्वान् जिज्ञासु बैठे थे, मैं स्वरों का बोलबाला रहा है, ऐसी विकट स्थिति में आप भी थी। विराट प्रज्ञाशाली व्यक्तित्व के समक्ष, मैं संकोच श्री ने बड़ी निडरता एवं मैत्री पूर्ण वातावरण में सहयोग वश चुपचाप बैठी थी। श्रद्धा भावना में बह जाना चाहती स्थापित करने का भरसक प्रयल किया है तथा कर भी रहे थी पर वाणी का प्रकटीकरण नहीं हो पा रहा था। भला हैं। भीड़ भाड़ व बाड़े बन्दी के इस युग में जब सभी भावों की सरिता को शब्दों में कहाँ बाँध पाते हैं। ऐसे में अपने अपने खेमे मजबूत बनाने की फिराक में हैं, ऐसी मौन ही मुखरित होता है। पर गुरुदेव ने अपनी वात्सल्यमयी विकट स्थितियों में भी आपको शिष्य बनाने की कोई दृष्टि एवं वाणी माधुर्य से सहज रूप से वार्तालाप शुरू कर लालसा या आकांक्षा नहीं है। आपकी सुदृढ़ लेखनी ने दिया। मेरे भीतर का संकोच धीरे धीरे तिरोहित होता जा सदैव व्यक्ति को गुणग्राही बनने की प्रेरणा दी। आपका रहा था। अपने परिजनों से सुना था कि बड़े-बड़े साधु कथन है सिर्फ अपने भक्तों की ओर ही ध्यान देते हैं। सामान्य व्यक्ति से बात करना तो दूर, पूछते तक नहीं, नजर _ "हम अपने विद्यमान अल्प से अल्प गुणों का भी उठाकर भी नहीं देखते। पर आज इस निस्पृह शिरोमणि कितना बखान करते हैं, कितना अहंकार करते हैं, मियां/ के सामने, परिजनों की बातें असत्य सिद्ध हो रही थी। मिठू बनने में कितना आनन्द आता है। उतना आनंद भौतिक इच्छाओं से परे, पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान की हमें दूसरों के गुणों को देखकर नहीं होता। अतः हमें तुच्छ इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने वाले इस योगी का परमानंद की प्राप्ति न हो तब तक हमारी साधना अधूरी सान्निध्य पाकर मैं आत्मिक आनंद की अनुभूति से अभिभूत थी। बार-बार मेरा हृदय इस जिन-मार्गी साधक के समक्ष - आपका अहिंसा विषयक युगीन चिन्तन युवाओं के श्रद्धावनत हो जाता था। आज भी जब कभी मैं अपनी हृदय में जोश व उत्साह भर देता है, कुछ कर गुजरने की अल्पज्ञता से व्यथित होती हूँ तो आत्मा आपके साहित्य चाह जगा जाता है। वहीं पुरानी पीढ़ी को भी आन्दोलित एवं पीयूष वचनों का मनन करती है और स्वतः कपूर की कर सत्य बात को स्वीकारने को मजबूर कर देता है मानों भाँति दीनता-हीनता खुद-ब-खुद काफूर हो जाती है। वर्षों से शिथिल पड़ी हमारी चेतना शक्ति को झकझोर | फिर से नया विश्वास और मनोबल दृढ़ हो जाता है। कर जागृत कर रहे हों। पीयूष प्रवचन धारा में, भाषा में | आप अक्सर मोक्ष अभिलाषा का द्वीप प्रज्वलित करते हुए न आवेश होता है न कठोरता। हाँ स्पष्टवादिता एवं | कहा करते हैं - सौम्यता झलकती है। उस दिन के प्रवचन में उद्बोधित वक्त आएगा ऐसा कभी न कभी, पक्तियाँ आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित हैं- ।। सिद्धि पाएंगें हम भी कभी न कभी... ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy