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________________ वंदन -अभिनंदन ! नहीं करता। चाहे वो सगा ही क्यों न हो? चौथे कामशास्त्र | है। अनेक पद और सम्मान से आप अलंकृत हुए हैं, जो के पंडित के अनुसार पांचाल ऋषि ने कहा कि प्रीति की | आपके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को उद्घाटित करते सच्ची रीत स्त्रियों के साथ मृदुता का व्यवहार करना है। यह सुनकर राजा ने कहा – “पंडितो! आपने एक मुनिश्री सुमनकुमारजी सर्वतोभद्र व्यक्तित्व के धनी एक विषय पर एक एक लाख श्लोक रचे । आपकी बुद्धि हैं। प्रवचनकार, साधक और साहित्यसेवी-त्रिवेणी के संगम विषय का विस्तार करने में निपुण है लेकिन मुझे देखना हैं। जैन परम्परा के संरक्षण में आप श्री के अनन्त था कि आप विषय को कितना संक्षेप में कह सकते हैं | उपकार हैं। जैन विद्वानों के समागम और तत्त्व चर्चा में और यह आपने करके दिखा दिया। मैं आप चारों को | आपको विशेष रुचि है। नयी पीढ़ी को संस्कारित करने एक एक लाख सोने की मोहरे इनाम में देता हूँ।" इस | में आप अग्रणी हैं। ऐसे साधक सन्त का साधनामय तरह पंडितों की कद्र हुई एवं वे इनाम पाकर बहुत खुश | जीवन सुदीर्घजीवी हो इस मंगलकामना के साथ उनके हुए। चरणों में सादर वन्दन! इसी प्रकार श्रद्धेय श्री सुमनकुमारजी म.सा. में भी - प्रो. प्रेमसुमन जैन आचार्य एवं अधिष्ठाता धर्म की हर बात को विस्तार रूप एवं संक्षेप रूप में सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय समझाने की अद्भुत एवं विलक्षण प्रतिभा है। यदि जीवन सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुछ क्षणों में वह सार आत्मा को स्पर्श कर ले तो निश्चय में वह आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेगी। मैं मुनिश्री के पावन चरणो में नत मस्तक होता हुआ उनके शतायु होने की कामना करता हूँ। चरण कमलों में वन्दन! ० महावीरचंद ओस्तवाल श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनकुमारजी चेन्नई - ७६. की दीक्षा-स्वर्ण-जयंति के उपलक्ष्य में प्रकाश्यमान अभिनंदनग्रंथ के लिए मंगल-कामना एवं पूज्य मुनिश्री के चरण कमलों में वंदना प्रेषित कर रहा हूँ। सर्वतोभद्र व्यक्तित्व के धनी श्री सुमनमुनिजी का जीवन-वृत्त देखने से मन प्रमुदित परम श्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी ने अपने तपःपूत होता है। निपट साधारण परिवार और परिवेश से यात्रा साधक जीवन में देश की धरती को अपने पावन चरणों से आरंभ करके आपने जो असाधारणताएँ अर्जित की हैं वे पवित्र किया है। अनेक प्रान्तों में अपनी ओजस्वी वाणी सचमुच अभिनंदनीय है। जैनधर्म मानववाद और आत्मवाद द्वारा मानव-धर्म का उद्बोधन देते हुए सम्प्रति आप चेन्नई का समर्थक व पोषक रहा है। मुनिश्री के जीवन से यह के जन समुदाय को नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से स्पष्ट परिलक्षित होता है। अनुप्राणित कर रहे हैं। आपने अपनी दीक्षा की अर्धशताब्दी “जैन श्रमण जीवन अंगीकार करना आसान नहीं में जैन धर्म-दर्शन के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका निभायी | है। श्रेष्ठ संतों का अभाव होता जा रहा है और आस्थाएँ ४१ in Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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