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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
साधुत्व की सौरभ से महकते
सुभाष ओसवाल
परमवंदनीय मुनिश्री सुमनकुमार जी महाराज 'श्रमण' का । दर्शन सान्निध्य जिन्हें भी प्राप्त हुआ है, वे मेरी एक बात से तो । सहमत होंगे ही कि गुरूदेव “यथानाम तथागुण” सम्पन्न मुनिराज हैं। आप जन-मन को अपने साधुत्व की सौरभ से तो भुग्ध करते ही हैं साथ ही कदापि अपने श्रमणाचार से समझोता नहीं करते हैं।
आपकी जीवन शैली अद्भुत है। आप ऊपर से अखरोट की। तरह कठोर दिखाई देकर भी अन्दर से अत्यन्त सुकोमल, करुणामूर्ति और मृदु हैं।
आपके प्रति मेरी भक्ति का आधार निर्मित किया मेरे पिता श्री लाल बनारसी दास जी ने। उन्होंने ही आपके साथ अपने अनन्य सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए आपके विशिष्ट गुणों से मुझे परिचित कराया। तभी से मेरा हृदय आपके प्रति आस्थासम्पन्न रहा
ऋषिजी म. ने आपको श्रमणसंघीय सलाहकार तथा मंत्रीपद प्रदान किया।
आपका संयमीय जीवन चतुर्विध संघ को संयमीय सौरभ से. सुरभित करता रहा है। पचास वर्षों के प्रलम्ब साधना काल में एक भी टेढ़ी अंगुली आपकी ओर नहीं उठी है। आपके संयमीय जीवन की सफलता का यह एक सशक्त प्रमाण है।
आप एक कुशल व्याख्याता और लेखक मनिराज हैं। आपका लेखन तत्त्वपरक और शोधपूर्ण होता है। आपकी कृति “पंजाव श्रमण संघ गौरव" एक कालजयी कृति है। 'शुक्ल प्रवचन' नाम से आपके प्रवचनों के कई भाग प्रकाशित हो चुके हैं। 'तत्त्व चिन्तामणि' नव तत्त्वों की गम्भीर व्याख्या वाला ग्रन्थ है।
आप एक सर्वतोमुखी व्यक्तित्व सम्पन्न महासाधक हैं। मैं चाहता हूँ कि मेरी आस्था की किश्ती आपके चरण तीर्थ से सदैव बन्धी रहे।
दीक्षा के पचासवें वर्ष में प्रवेश पर मैं हृदय की अनन्त आस्थाओं के साथ आपका अभिनन्दन करता हूँ।
आप सामाजिक संगठन के प्रबल पक्षधर रहे हैं। विखण्डन आपको पसन्द नहीं है। संगठन के लिए... एकता के लिए आप बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को सदैव तत्पर रहते हैं।
पूना मुनि सम्मेलन में एक स्वर से आपको संत-संसद का सभापति मनोनीत किया गया था। आचार्य भगवन श्री आनन्द
सुभाष ओसवाल
दिल्ली (पूर्व युवाध्यक्ष)
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