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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि विरोध की बौछारें करते रहे। यह इस संत की ही हिम्मत | ज्ञान - सागर से निकला अमृत थी। हाँ में हाँ कभी नहीं मिलाया, भीमकाय पाषाण खंड की तरह अपने कर्तव्य के प्रति सुदृढ़ रहे। इस संत के | ___ वस्तुतः श्री सुमनमुनि म.सा. जैन समाज के उच्चकोटि पास जो भी है जैसा भी है, जिस रूप में है वह सच्चा और | के चमकते नक्षत्र हैं। आपका जैसा नाम है वैसा ही इसका मौलिक धन है। जीवन है। सुमन का अर्थ होता है - फूल । फूल जो लोगों का दिल धड़कने लगता है अपनी महक चारों ओर फैलाकर वातावरण को सुगंधित कर देता है वैसे ही मुनिश्री ने साहुकार पेठ चातुर्मास में __यह संत बोलता नहीं है, गरजता है। गाता नहीं है चारों ओर ज्ञान की सुगंध ही सुगंध फैला दी। ललकारता है। यह जब किसी सच्चाई को लेकर दहाड़ता है तब कितने ही लोगों का दिल धड़कने लगता है, कितने आपका जन्म करीव ६४ वर्ष पूर्व राजस्थान के ही मानस हिल जाते हैं। बीकानेर जिले के छोटे से गांव पांचूं में माघ सुदी पंचमी संवत् १६६२ में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री देश काल की परिस्थितियाँ बदल गई, मगर यह संत भीवराजजी चौधरी एवं माताजी का नाम वीरांदेजी था। ज्यों की त्यों रहा, नहीं बदला। इसकी वही चिंतन धारा, १४ वर्ष की लघुवय में आपने पूज्य श्री शुक्लचंदजी वही स्वाध्याय, वही आगम अध्ययन, वही संस्कृति की म.सा. मुखारबिंद से दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के बाद बातें बता-बता कर पावन मन्दाकिनी बहा रहा है। यह आपका विशेष विहार क्षेत्र - पंजाब, हरियाणा, राजस्थान संत सदा सतर्क है। जागरूक प्रहरी है। रहा। वर्तमान में आपने महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक यह मस्तमौला है आंध्रप्रदेश एवं मालवा आदि क्षेत्रों को भी पावन किया यह संत चतुर्विध संघ के गुणगाता रहा, गाता रहा एवं भगवान महावीर की देशना को जन-जन तक पहुंचाया। और गगन को देख-देखकर उसमें झांकता रहा। सूर्य- ___आपका हिंदी, गुजराती, पंजाबी, मारवाड़ी, अंग्रेजी चन्द्र-नक्षत्र-नदियों-झरनों-पेड़-पौधों में इस संत ने मानवता | आदि विभिन्न भाषाओं पर समान अधिकार है। संस्कृत का सच्चा रूप देखा है। यह तप-त्याग का चलता-फिरता एवं प्राकृत के प्रकांड विद्वान, है। आपका ज्ञान एवं मसीहा है। इनका विपुल साहित्य है, व्याख्यानों से सभी चिंतन दोनों ही बहुत गहरे हैं। कवीर ने सही कहा है किप्रभावित हैं। ऐसे संतो के बल पर ही श्रद्धा पनपी है, भक्ति जमी है। यहीं तो मनमौजी पनपी है, भक्ति जमी साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय । है। यह तो मनमौजी स्वभाव का मस्तमौला हैं। श्रमणसंघ सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय।। का उज्ज्वल सितारा है। यह राष्ट्र का वन्दनीय संत है। आपने ज्ञान के गहरे सागर में जो सार (अमृत) आप दीर्घायु हों, यशस्वी हों, सभी को उत्तमोत्तम निकाला उस प्रसाद को आप व्याख्यान के माध्यम से जनमार्गदर्शन दें और अपनी साधना से वीरशासन को और जन को पिला रहे हैं। यशस्वी बनावें- इसी कामना के साथ-भावना है। ज्ञानक्रिया का अद्भुत संगम - आपका आगम ज्ञान 0 मिद्वालाल मरड़िया 'साहित्यरत्न' | बहुत गहरा है। गंगा-यमुना एवं सरस्वती जहां मिलती है बेंगलोर - २५. | उसे संगम कहा जाता है। ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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