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________________ वंदन - अभिनंदन ! (चलता-फिरता मसीहा ) स्वातंत्र्य संग्राम के शहीदों की तरह खड़े होकर प्रेम और एकता का उद्घोष कर रहे हैं। धन्य है इस सुमन को ___ इस संत का मनोबल बहुत ऊँचा और गहरा है। यह यह सुमन - समाज का, देश का और धर्म का खिला बनाता है, जोड़ता है। तोड़ता नहीं। चतुर्विध संघ की सुमन है। उस सुमन ने न मालूम कितने बुझदिलों में महक रंगस्थली का यह चतुर चितेरा है, जन-जन में प्रेम और भरी है। कितने अनगढ़ पाषाणों को भगवान बना दिया एकता की गंगा बहाने वाला यह मस्त संत है। इस संत है, कितने, लोभी, लालची और दंभियो के जीवन में का मानस समता की अनन्त तरंगों से भरा है। साधना मानवता जागृत की है । न मालूम कितने समाजों, व्यक्तियों इसके कर्म की मनोभूमि है। साधकों के अंतर में सत्-चित्-आनंद का पीयूष रस भरा हिम्मत नहीं हारी : है। संतत्व के पुनीत उपादानों, जीवन के कठोर अनुभवों उत्थान और पतन की अनेक घाटियों, सुख-दुख के अनेक इस संत का संतत्व साधना के अनुपम श्रोतों में बहा करिश्मों के साथ धैर्य विवेक और क्षमा का आत्मीय रस है। यह निर्भीक खरा और तपा हुआ अनुभवी और भरकर उनको जीवन जीने की कला सिखायी है। सभ्यता वयोवृद्ध संत है। यह स्वच्छ, निर्मल और पवित्र है। और संस्कृति का रहस्य हृदयंगम कराया है। इस सुमन में महान् व्याक्तित्व के धनी इस व्यक्ति ने श्रमणसंघ में बहुत साधना की अनंत शक्ति भरी है। आज भी यह बड़ी बड़ा कार्य संपन्न कर कई पदों को अलंकृत किया है। हिम्मत के साथ भागता है और दौड़ता है। देखते-देखते इसका प्रभाव बड़ा जबरदस्त है। श्रमणत्व की दर्शन ही यह भागा जा रहा है। यह देश का निस्पृह कर्मयोगी धाराओं से इस साधु पुरुष ने वीर शासन की शोभा बढ़ाई संत अपने संतत्व की पूरी तैयारी कर चुका है। श्रमणत्व है। यह महान् व्यक्तित्व का परम पुरुषार्थ है। जीवन में की सभी दिशाएं लांघ चुका है। धन्य है इस सुमन को । इन्हें कई कटु अनुभव भी हुए हैं, इस पर कई बार संकट के बादल मंडरायें, अविवेक के तूफान उठे, मगर इस एकता का उद्घोष कर रहा है सज्जन संत ने निराश होकर कभी हिम्मत नहीं हारी। साबरमती के संत की तरह यह मरूधरा का फकीर कभी घबराकर दु:खी नहीं हुआ है और निरंतर चलता ही भी देश-काल की सीमाओं से ऊपर उठ चुका है। बालू के | रहा और आज भी यह निरंतर चलता ही जा रहा है। कण-कण को पावन बनानेवाला उसमें सौरभ डालने वाला | मौलिक धन है यह संत अपने अदम्य उत्साह और बेफिक्रि से राष्ट्र को आज समाज, धर्म और देश को ऐसे ही धर्मवीर, गौरवान्वित कर रहा है। कर्मवीर और फक्कड़ संतों की आवश्यकता है जो अपने चश्में में चमकती और झाँकती इसकी आँखें दर्शनीय | आत्मबल और अपने प्रभाव से अंधश्रद्धा मिटा सके, है। मंझलाकद, दुबली पतली काया, ललाट की उन्नत अंधभक्ति हरा सके, आडंबरों को तोड़ सके। यह संत रेखाएँ गौरवमंडित साधना, प्रसन्नवदन, खिलखिलाना, हंसना किसी भक्त की प्रशंसा में नहीं पड़ा, किसी की चापलूसी और हंस-हंसकर ठहाके लगाना, मनोविनोद करना इस | नहीं की, किसी के चक्कर में नहीं फंसे और निर्भीकता के संत के फक्कड़पन की निशानी है। इसकी खोपड़ी के बाल | साथ सामाजिक बुराइयों के प्रति अपनी मर्यादा में रहकर ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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