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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी व्यक्तित्व और चिन्तन डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी भगवान् महावीर के पूर्ववर्ती थे - तीर्थंकर पार्श्वनाथ ! तीर्थंकर पार्श्वनाथ का व्यक्तित्व और चिन्तन आगमों में यत्र-तत्र मुखरित हुआ है। उन्हीं के व्यक्तित्व एवं चिंतन कणों को शोध-खोज कर ले आये हैं - डॉ. फूलचंदजी जैन 'प्रेमी'। - सम्पादक वर्तमान में जैन परम्परा का जो प्राचीन साहित्य उपलब्ध है, उसका सीधा सम्बन्ध चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर से है। इनसे पूर्व नौवीं शती ईसा पूर्व काशी में जन्मे तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी इस श्रमण परम्परा के महान् पुरस्कर्ता थे। उनके विषय में व्यवस्थित रूप में कोई साहित्य वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, किन्तु अनेक प्राचीन ऐतिहासिक प्रामाणिक स्रोतों से ऐतिहासिक महापुरुष के रूप में मान्य हैं और उनके आदर्शपूर्ण जीवन और धर्म-दर्शन की लोक-व्यापी छवि आज भी सम्पूर्ण भारत तथा इसके सीमावर्ती क्षेत्रों और देशों में विविध रूपों में दिखलाई देती है। लाखों की संख्या में बसने वाली सराक, सद्गोप, रंगिया आदि जातियों का सीधा और गहरा सम्बन्ध तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा से है। इन लोगों के दैनिक जीवनव्यवहार की क्रियाओं और संस्कारों पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ और उनके चिन्तन की गहरी छाप है। सम्पूर्ण सराक जाति तथा अनेक जैनेतर जातियां अपने कुलदेव तथा इष्टदेव के रूप में आज तक मुख्य रूप से इन्हीं को मानती रही हैं। ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शती के सुप्रसिद्ध जैन धर्मानुयायी कलिंग नरेश महाराजा खारवेल भी इन्हीं के प्रमुख अनुयायी थे। अंग, बंग, कलिंग, कुरु, कौशल, काशी, अवन्ती, पुण्ड, मालव, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्नाटक, कोंकण, मेवाड़, लाट, काश्मीर, कच्छ, वत्स, पल्लव और आमीर आदि तत्कालीन अनेक क्षेत्रों और देशों का उल्लेख आगमों में मिलता है, जिनमें पार्श्व प्रभु ने ससंघ विहार करके जन-जन को हितकारी धर्मोपदेश देकर जागृति पैदा की। इस प्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा उनके लोकव्यापी चिन्तन ने लम्बे समय तक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र को प्रभावित किया है। उनका धर्म व्यवहार की दृष्टि से सहज था । धार्मिक क्षेत्रों में उस समय पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा आदि के लिए हिंसामूलक यज्ञ तथा अज्ञानमूलक तप का बड़ा प्रभाव था, किन्तु अर्धमागधी प्राकृत साहित्य में उनके लिए “पुरुसादाणीय" अर्थात् लोकनायक श्रेष्ठ पुरुष जैसे अति लोकप्रिय व्यक्तित्व सूचक अनेक सम्मानपूर्ण विशेषणों का उल्लेख मिलता है। वैदिक और बौद्ध धर्मों तथा अहिंसा और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति पर इनके चिन्तन और प्रभाव की गहरी छाप आज भी अमिट रूप से विद्यमान है। वैदिक, जैन और बौद्ध साहित्य में इनके उल्लेख तथा यहाँ उल्लिखित व्रात्य, पणि और नाग आदि जातियाँ स्पष्टतः पार्श्वनाथ की अनुयायी थीं। भारत के पूर्वी क्षेत्रों विशेषकर बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि अनेक प्रान्तों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में १७६ तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी व्यक्तित्व और चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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