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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
वस्तुतः परमात्मा का कोई स्वरूप नहीं है फिर भी विविध कामनाओं को लेकर रूपों की कल्पना की गई है। फिर उन रूपों और उपासना पद्धतियों ने संप्रदाय का रूप ले लिया और परस्पर खंडन-मंडन होने लगा। इस सांप्रदायिकता के कारण ध्यान का जीवन के साथ सम्बन्ध टूट गया और वह शास्त्रीय चर्चा में ही सीमित हो गया ।
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आज उसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। यदि सांप्रदायिक कदाग्रह छोड़कर वैज्ञानिक पद्धति पर अन्वेषण किया जाए तो ध्यान की ये प्रकियाएं जीवन के लिए बहुत उपयोगी बन सकती हैं ।
- संपादक - 'आपकी समस्या- हमारा समाधान' (मासिक)
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डॉ. श्री अशोक जी 'सहजानन्द' का जन्म १६-२-४६ को मेरठ (उ.प्र.) में हुआ । शिक्षा - शास्त्री, साहित्यरत्न एम. ए., बी. एड., आर. एम. पी. आयुर्वेद ! साहित्यिक अभिरूचि, १०० से अधिक आलेख प्रकाशित ! प्रधान सम्पादक हैं- 'आपकी समस्या- हमारा समाधान' ( मासिक-पत्र) के । सम्मान प्रदर्शन से दूर, कर्मठ अध्यवसायी ! जन्म से नहीं अपितु कर्मणा भी जैन ! महत्वपूर्ण अनेक ग्रंथों के सम्पादक एवं लेखक !
हम कहते हैं - “मकान बहुत सुंदर है" बहुत अच्छा है । किन्तु खड़ा किसके आधार पर है? नींव के आधार पर खड़ा है। उस नींव को तो याद ही न करे केवल ऊपर के निर्माण को देखकर ही कहें तो यह एक पक्ष होगा, एक दृष्टिकोण होगा। जैन दर्शन ने वस्तु को एकाकी दृष्टिकोण से देखने को “अपूर्ण” कहा है। उसे अनेक दृष्टियों से देखना चाहिए, क्यों कि वस्तु अनेक धर्मात्मक है ।
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- सम्पादक
जिसने प्रभु को अपने हृदय में बसा लिया है उसको याद करने की जरूरत नहीं रहती । उसका मन तो निरंतर, अखण्डरूप से उस प्रभु के स्वरूप में ही तन्मय रहता है । एकाग्र / लीन रहता है । कैसे ? जैसे पनिहारी का घट में, नट का अपने संतुलन में, पतिव्रता नारी का पति में, चक्रवाक पक्षिणी का सूर्य ध्यान रहता है ।
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सुमन वचनामृत
ध्यान और अनुभूति
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