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________________ जैन संस्कृति का आलोक ध्यान और अनुभूति । डॉ. अशोक जैन 'सहजानन्द' ध्यान और अनुभूति के माध्यम से डॉ. श्री अशोक जैन 'सहजानन्द' ने यह बताने का प्रयास किया है कि अनुभूति जितनी तीव्र होगी ध्यान उतना ही प्रबल होगा। ध्यान कषायों से आत्मा को विरत कर उपशांत बनाता है और आत्मा में एक अलौकिक ज्योति प्रगट करता है। अनुभूतिजन्य बन पड़ा है - यह आलेख । - सम्पादक अनुभूति से टकराकर घायल हो जाता है किन्तु हमें अपने कार्यालय मार्ग पर चलते हुए हमारे सामने अनेक दृश्य आते हैं में ठीक समय पर पहुँचने की पड़ी रहती है। दुर्घटना को देखकर भी अनदेखी कर देते हैं। कार्यालय में पहुँच कर किन्तु घर पहुँचते ही उन्हें भूल जाते हैं। समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक स्थान पर दुर्घटना हो गई और अनेक यदि उसकी चर्चा भी करते हैं तो उस चर्चा में हमारे हृदय लोग मर गए। हम समाचार पत्र पढ़कर एक ओर रख की वेदना प्रगट नहीं होती। इसके विपरीत यदि वह देते हैं। ऐसा लगता है जैसे वह घटना हुई ही नहीं अथवा व्यक्ति हमारा आत्मीय है तो हम कार्यालय को भूलकर उसका हमारी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं। अनेक स्थानों पर उसके उपचार में लग जाते हैं। बहुत बार ऐसा भी होता विपत्ति के कारण हजारों व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। न है, एक व्यक्ति को कष्ट पीड़ित देखकर हम उसकी सुरक्षा इन समाचारों को पढ़कर किसी के मन में तनिक सा ___ में लग जाते हैं किन्तु जब उसका कष्ट लम्बे समय तक संवेदन होता है, मुँह से एक आह निकलती है और चलता है और दैनिक आवश्यकताओं में अड़चनें आने अनुभूति समाप्त हो जाती है। यदि उन दुर्घटनाओं में लगती हैं तो सुश्रूषा शिथिल हो जाती है। एक दिन हृदय इतना कठोर हो जाता है कि सहानभति भी नहीं रहती। उसका कोई आत्मीय होता है और वह जितना निकट होता है, अनुभूति उतनी ही उत्कट और स्थायी होती है। आत्मीय होने पर भी उसका कष्ट हमें विचलित नहीं करता। इसी प्रकार यदि दुर्घटना हमारे सामने हो तब अनुभूति हमारी निजी आवश्यकताएँ उस अनुभूति को दबा देती अपेक्षाकृत प्रबल होती है। सामने लेटे हुए रुग्ण या हैं।... इसके विपरीत यदि यह प्रतीत हो कि उस सुश्रूषा घायल की कराहट जो संवेदन उत्पन्न करती है, दूरस्थ से स्वार्थपूर्ति भी होगी तो अनुभूति स्थायी ही नहीं उत्तरोत्तर सैकड़ों व्यक्तियों की कराहट का समाचार, उत्पन्न नहीं बढ़ती चली जाती है। करती। इन उदाहरणों से निष्कर्ष निकलता है कि घटना ध्यान की निष्पत्ति जितनी निकट होगी, अनुभूति भी उतनी ही प्रवल होगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनुभूति को प्रबल आत्मीयता से अनुभूति प्रबल बनाने के लिए साक्षात्कार, लक्ष्य की आत्मीयता तथा दूसरा तत्व आत्मीयता है जिस व्यक्ति को हम पराया उसके द्वारा स्वार्थ का पोषण इन तीन तत्वों की आवश्यकता समझते हैं, उसके साथ प्रत्यक्ष दुर्घटना होने पर भी अनुभूति है। ध्यान को भी शक्तिशाली बनाने के लिए भी इन प्रबल नहीं होती। सड़क पर एक व्यक्ति बस या स्कूटर तीनों की आवश्यकता है। ईश्वर हमारी आत्मा से भिन्न | ध्यान और अनुभूति १११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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