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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि समाज यशस्वी होता है तो उसका श्रेय उसके संचालक | साधक जीवन में ग्रामानुग्राम विचरण करते आपने को ही जाता है। ऐसे महामानव पूर्व काल में अनेक हो | अपने सद् उपदेशों से, प्रेरणाओं से समाजहित में अनेकानेक गए हैं और आज भी है और आगे भी होंगे। कार्य करवाये हैं। वर्तमान में समाज उन कार्यों से लाभान्वित हो रहा है और समाज का उज्ज्वल भविष्य सुरक्षित है। इसी क्रम में जैन श्रमण भी है जिन्होंने जैन समाज के स्थायित्व के लिए बड़े-बड़े कार्य करवाये हैं। ये साधक एक साधक अपनी साधना में सचेत रहते हुए भी सर्वप्रथम “जीवन क्या है?” उससे सभी को परिचित समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है। वस्तुतः जीवन करवाते हैं। इनके सदुपदेशों से जिज्ञासु मानव जीवन की सार्थकता, अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। मोक्ष पानेवालों को जीने की कला सीख लेता है। तप-त्याग, व्रत-प्रत्याख्यान, श्रमणत्व के दौर से गुजरना ही पड़ेगा। कौन जाने यह दान-पुण्य उसके जीवन के अंग बन जाते हैं। वह समझ आत्मा भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के कौन से चरण में के साथ समाज के लिए समर्पित हो जाता है क्योंकि उसे है। मगर यह सत्य है कि भवों-भवों तक साधना करते जीवन जीने की कला तथा जीवन उद्देश्य प्राप्त हो जाता रहने से ही कर्मबंध शिथिल होते हैं और श्रमणत्व प्राप्त है। अनेकानेक उदाहरण आपको मिल जाएँगे कि अमुक कर सीढ़ी दर सीढ़ी वे अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करते व्यक्ति अमुक श्रमण-श्रमणी के संपर्क में आने के पश्चात् है। आप भी अपने लक्ष्य में सफल हो यही मेरी मंगल उसका जीवन ही बदल गया और समाज का वल्लभ एवं मनीषा है। आपकी असीम कृपा रही जो आपके इतने प्रतिष्ठित व्यक्ति हो गया। सिंकदर के समय से लेकर सन्निकट आ सका। आपने असीम कृपा करके मेटुपालियम् आज तक अनेकानेक व्यक्ति इसके उदाहरण है जिनसे में चार्तुमास किया एवं मुझे तथा मेरे परिवार को उपकृत इतिहास भरा पड़ा है। ठीक वैसे ही आज दक्षिण में किया है। हमें सद्मार्ग सिखाया है। समाज की भावी श्रमणाचार की प्रतिमूर्ति श्री सुमनमुनिजी म.सा. है। इनका पीढ़ी पर आपने अनंत उपकार किया है। चार महीनों जीवन ४६ वर्ष के श्रमणत्व जीवन के उदाहरणों से आते तक सतत धार्मिक शिक्षण देकर बालक बालिकाओं को प्रोत है। आपश्री ने जैन स्थानकवासी परंपरा के प्रथम शिक्षित किया है। युवकों में धर्म के प्रति रुचि पैदा की आचार्यश्री आत्मारामजी म.सा., द्वितीय पट्टघर श्री है। प्रौढ़ एवं बुजर्गों को उनके दायित्व से परिचित करवाकर उन्हें श्रद्धान्वित बनाया है। यह हमारे अपने आनंदऋषिजी म.सा. एवं ततीय पटटधर देवेन्द्रमनिजी म.सा. का सानिध्य प्राप्त किया है। जीवन के प्रथम चरण अनुभव हैं। मैं तथा समग्र समाज आपश्री के प्रति हार्दिक में ही इन्हें सद्गुरु की प्राप्ति हो गई थी। उनका सदुपदेश आभार व्यक्त करते हैं। आपके सन्निकट आने से हम सुनकर सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो गए, यह आपके आपकी महानता, श्रेष्ठता से प्रभावित हुए हैं। हम आपकी प्रबल पुण्यशील होने का द्योतक है। फिर सद् साहित्य का दीघार्यु की तथा स्वस्थ स्वास्थ्य की मंगल कामना करते गहन अध्ययन उस पर विद्वानों के संपर्क से चिंतन मनन करने का सुअवसर भी प्राप्त हो गया। खुद परिपक्व हो आज मेरी स्थिती गूंगे की है। मैं आपकी विशेषताओं जाने के पश्चात् अपने अनुभवों के साथ लेखनकार्य भी का, आपके द्वारा की गई समाज के प्रति सेवाओं का आपने संपन्न किया जो समाज को तथा साधकों के लिए | वर्णन अपने शब्दों में नहीं कर सकता हूँ। सच ही कहा उपयोगी सिद्ध हुआ है। है – “गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी।" हूँ। आप चतुर्विध २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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