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________________ वंदन - अभिनंदन ! _ श्रद्धेय गुरूदेवश्री को यदि पंजाब, उत्तरीभारत का, | आपने अपने सुदीर्घ प्रवास में अनेक प्रान्तों में विचरण श्रमणसंघ के आज तक के इतिहास की जानकारी का | करके पंजाब-हरियाणा का नाम रोशन किया है। आपका सर्वश्रेष्ठ इतिहासकार कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं जीवन संयमशील एवं विवेकशील है। आप निर्भीक वक्ता होगी। पूना जैसे श्रमणसंघीय सम्मेलन को निर्विजता से और सूझबूझ के धनी हैं। जिन-जिन पदों से आपको संपन्न करवाने में इन्हीं का कुशल हाथ है। विद्वान् मुनियों अलंकृत किया है, उन पदों के लिए आपश्री का व्यक्तित्व में भी आपका स्थान शीर्षस्थ है। पंजाब प्रान्त से बाहर- | अनुकूल हैं। आप मिलनसार, समन्वयवादी, विचारों के जाकर बारह वर्षों में आपने जो ख्याति प्राप्त की है उससे धनी एवं सरल आत्मा हैं। आपश्री के गुरुदेवों का महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडू, दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति के अवसर पर हम आपका हार्दिक आंध्रप्रदेश आदि में भी नाम उज्ज्वल हुआ है। हम अभिनन्दन करते हैं तथा भावना भाते हैं कि आप वीर आपश्री के सदैव ऋणी रहेंगे। श्रमणसंघ में आई अति प्रभु के संयम-मार्ग पर अग्रसर होते रहें तथा शिथिलाचार गंभीर समस्याओं को सुलझाने में आपका सदैव सहयोग जहाँ भी नज़र आये, उसका घोर विरोध करें। रहा है। राधेश्याम जैन उत्तरी भारत में उपाध्याय पद की समस्या जो आई प्रधान, एस.एस. जैन सभा, चण्डीगढ़ थी और आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषि जी महाराज के एस.एस. जैन महासभा, हरियाणा समय अत्यंत गंभीर स्थिति ले चुकी थी उस गहन समस्या को सुलझाने में आपका योगदान कभी भी विस्मृत नहीं गिरा अनयन, नयन बिनु कर सकेंगे। वाणी अंत में मैं केवल इतना ही लिख सकता हूँ कि ऐसे दूरदर्शी निडर स्पष्ट वक्ता संत बहुत ही कम होंगे। जीवन क्या है? जीवन कैसे जीना चाहिए? जीवन "कदम चूम लेती है खुद आके मंजिल । का उद्देश्य क्या है और क्या होना चाहिए? इन सभी का मुसाफिर अगर, हिम्मत न हारे।" उत्तर पाने की जिज्ञासा हुई। इसके लिए बड़े-बूढ़ों के अनुभवों को सुना, कुछ किताबें पढ़ीं, कुछ जीवन चरित्र टी. आर. जैन, लुधियाना पढ़े। सब में और सबसे एक ही उत्तर मिला - सत् गुरु संरक्षक : श्री अ.भा.श्वे.स्था. जैन कान्फ्रेंस, नई दिल्ली की प्राप्ति । सत्गुरु की प्राप्ति में सब प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा। समन्वयवादी विचारों के धनी "रत्नगर्भा वंसुधरा" की उक्ति आज भी है और प्रायः देखने में आया है कि जिस व्यक्ति का जन्म भविष्य में भी रहेगी। अनेक भिन्न-भिन्न मतावलंबी है। अथवा दीक्षा वसन्त पञ्चमी को हो तो वह व्यक्ति बड़ा हर एक मत में अपने-अपने पूज्यनीय है जो अपने संगठनों, भाग्यशाली होता है, उसका जीवन चमकता है और वह | अपनी मान्यताओं और अपनी धार्मिक वृत्तियों को संचालित दूसरों के लिए आदर्श बनता है। ....यह बात श्रद्धेय | करते आ रहे हैं और समाज भी एक सूत्र में बंधकर उक्त मुनिश्रेष्ठ पर पूर्णरूपेण सिद्ध होती है। | मान्यताओं के अनुरूप कार्यकर यशस्वी बनता है। जब २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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