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________________ पार्श्व को ही जैनधर्म का प्रवर्तक मान लिया। अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर, बौद्ध साहित्य में जिनका 'निगठ नातपुत्त' (निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र) के नाम से उल्लेख हुआ है का जीवन काल ५६६-५२७ ई. पू. है । महावीर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । श्रमण पुनरुत्थान आंदोलन पूर्णतया निष्पन्न हुआ, इसका अधिकांश श्रेय महावीर को है । " विश्व का प्राचीनतम धर्म जैन संस्कृति का आलोक निष्कर्षत: माना जा सकता है कि जैनधर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। चाहे उस समय अथवा अंतराल में उसका नाम जो भी रहा है । इस विषय पर शोध, आज की महती आवश्यकता है। जिससे आधुनिक इतिहासकारों की भ्रामक मान्यताओं का उन्मूलन किया जा सके। जो इतिहास के शोध छात्र इस क्षेत्र में कार्य करना चाहते हैं उनका सदैव स्वागत है । Jain Education International श्री मेघराज जी जैन का जन्म १८ अगस्त १६१८ को दिल्ली में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से बी. कॉम. की शिक्षा प्राप्त की तदनन्तर प्रकाशन व्यवसाय में संलग्न हो गये । आपकी जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार में विशेष अभिरुचि है । आप वर्तमान में लादेवी सुमति प्रसाद ट्रस्ट, दिल्ली के सचिव हैं। 筆 वैराग्य उसी का सफल है जिसे आत्मा का ज्ञान है । आत्मज्ञान के बिना वैराग्य शून्य है, ऊपरी वैराग्य का कोई महत्व नहीं है । जिस प्रकार किसी ने भोजन छोड़ा, वस्त्र त्याग दिये और कई प्रकार की उपभोग क्रियाएँ त्याग दी लेकिन आत्मज्ञान नहीं, तो उसका प्रभाव किस पर पड़ने वाला है? किसी पर भी नहीं ! आत्मज्ञान के बिना, किया गया त्याग, वह तो देह का कष्ट हो जाएगा । त्याग ज्ञान पूर्वक करना चाहिए। वहीं निर्जरा का कारण बनेगा, उसीसे सकाम निर्जरा होगी कर्म की । अन्यथा बालकर्म या अज्ञान कर्म ही कहलाएगा, अतः विराग के साथ ज्ञान होना अति आवश्यक है । For Private & Personal Use Only - सम्पादक — सुमन वचनामृत ८७ www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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