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प्रवचन - पीयूष - कण
प्रगट होता है। उसकी जीवन धरा पर 'अप्पा सो परमप्पा ऐसे में, भरी सभा में खड़े होकर नियम लेना आपकी निम्न के फूल अवश्य खिलते हैं।
सोच को ही प्रदर्शित करता है। प्रदर्शन नहीं आत्मदर्शन भाव बने हैं। तो गुरु महाराज के पास आइए।
नियम लीजिए। इस विधि से लिया गया नियम आपका समाज में प्रदर्शन की वीमारी छूत की तरह फैल रही ।
___ भाव नियम होगा। आपकी अन्तः प्रेरणा की पहचान है। मेरी यह वात आपको अच्छी नहीं लगेगी, क्योंकि
होगा वह नियम। आप परम्परावादी हैं, रूढ़ीवादी हैं। आज तक जो होता आया है, अथवा हो रहा है उससे आप तिलमात्र भी आगे
युग बदल रहा है। इस वदलते हुए युग में आप भी नहीं बढ़ना चहते हैं।
अपनी परम्पराओं को बदलिए। समझिए इस सत्य को कि
नियम मर्यादाएं आत्मा की वस्तुएं हैं। प्रदर्शन से उन्हें मत ___ मैं आपसे एक कटु प्रश्न पूछता हूँ कि - साठ वर्ष
जोड़िए। जीवन से जोड़िए। ... का एक वृद्ध और उसी की अवस्था की एक वृद्धा भरी सभा में खड़े होकर सजोड़े नियम लेते हैं कि आज से हम आन्तरिक रूपान्तरण चौथे व्रत का पालन करेंगे। उत्तर दीजिए। इस प्रदर्शन
अणगार वही होता है जो ऋजुकृत होता है। जो की क्या आवश्यकता है? क्या यह एक निम्न प्रकार का
ऋजुकृत नहीं है वह अणगार नहीं होता है। वात बहुत आडम्बर नहीं है? आप इसे शायद आडम्बर नहीं मानते। सीधी है। पर हम कैसे जानें कि यह अणगार है या आप उस आडम्वर में स्वय सम्मिलित हो जाते है। वृद्ध अणगार नहीं है। हम मनि-वेश को देखते हैं और नत हो को साफा पहनाते हैं। वृद्धा को चुन्नी ओढ़ाते हैं। क्या
जाते हैं। मुनि के मुनित्व की पहचान का वही पैमाना उन्होंने जीवन में कभी साफा अथवा चुन्नी धारण नहीं।
हमारे पास है। पर वेश से ही कोई मुनि अथवा अणगार की?
नहीं हो जाता है। यह प्रदर्शन किसलिए?
___ मुनि का श्वेत परिधान उसकी निर्मलता और सरलता मैं नियम की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं उस का प्रतीक है। प्रतीक को ही पकड़ने से सत्य पकड़ में आ 'ढंग' की आलोचना कर रहा हूँ जिस ढंग से आपने नियम जाए यह आवश्यक नहीं है। यह प्रतीक भीतरी परिवर्तन को प्रदर्शन की वस्तु वनाकर छोड़ दिया है। और मैं इसे की ओर इंगित करता है। अब भीतर परिवर्तन हुआ है बहुत निम्न स्तर का आडम्वर मानता हूँ। नियम लेने वाले या नहीं हुआ है यह अलग बात है। भीतर यदि परिवर्तन वृद्ध दम्पति के पुत्र, पुत्री, पुत्रवधु, पौत्र, पौत्री आदि सव नहीं हुआ है तो समझो वह प्रतीक भारस्वरूप ही है। सभा में उपस्थित होते हैं। इस नियम से आप उन्हें क्या
तीर्थकर महावीर ने कहा - जैसे गधा अपनी पीठ संदेश देना चाहते हैं? यही कि तुम बहुत शौर्य का काम
पर चन्दन का भार ढोकर भी चन्दन की सुगन्ध का कर रहे हो? शौर्य का काम तो तब होता जब तुम यौवन
आनन्द नहीं ले पाता वैसे ही सकषायी व्यक्ति मुनिवेश में वैसा करते। पैर जव कब्र में लटक गए हैं, देह जब
धारण करके ही संयम की सुगन्ध से वंचित रह जाता है। शिथिल, जर्जरित और भाररूप हो गई। जब आपको खड़े होने के लिए भी किसी के सहारे की अपेक्षा रहती है
मुनि के लिए यह आवश्यक है कि वह कषायों से
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