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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि एक दूसरे में सहिष्णुता का गुण न हो तो पति-पत्नी भी आध्यात्मिक जीवन – सभी जीवनों के लिए "वंदन क्रिया" सुखमय जीवन व्यतीत नहीं कर सकते। गुरुनानक देव ने । बहुत आवश्यक है। घर में भी अकड़ से काम नहीं कहा था चलता। पारिवारिक सदस्यों में अहंवृत्ति प्रधान हो जाए एक ने कही, दूसरे ने मानी तो घर घर न रहकर कुरुक्षेत्र बन जाएगा। यही स्थिति कहे नानक वे दोनों ज्ञानी। समाज की है। वहां भी जव अहं टकराते हैं तो समाज विखर जाता है। क्लेश उभर आते हैं। झगड़े होते हैं। एक कहे, दूसरा सुन ले, सह ले तो कलह नहीं होता, झगड़ा नहीं होता। जहां सहिष्णुता नहीं होती वहीं हमें झुकना सीखना चाहिए। झुकना अर्थात् बन्दन कलह होता है। पहले मानसिक कलह होता है, फिर करना हमारे छोटेपन की निशानी नहीं है। झुकने से वाचिक कलह होता है। यह कलह बढ़ते-बढ़ते मार-पीट आदमी छोटा नहीं बनता है। बड़ा बनता है। परिवार तक पहुंच जाता है। इतने हिंसक हो जाते हैं कि आदमी का, समाज का एक सिस्टम होना चाहिए। सिस्टम बनाए हत्या अथवा आत्महत्या तक कर लेता है। असहिष्णता गए थे। महापुरुषों ने मर्यादाएं निर्मित की थी। पर आज व्यक्ति को हत्यारा तक बना देती है। वे मर्यादाएं खो गई हैं। इसीलिए क्लेश उत्पन्न होगए हैं। सहिष्णुता अध्यात्म और व्यावहारिक – दोनों जीवनों 'वन्दन' सभ्य जीवन का एक महत्वपूर्ण गुण है। में आवश्यक है। विचार कीजिए.....साधक साधना करता वन्दन संगठन समाज और परिवार में प्रेम और मृदुता को है, परीषह आते हैं, उपसर्ग आते हैं उन्हें सहने के लिए जन्म देता है। पारस्परिक स्नेह वन्दन से सधन और सुदृढ़ सहिष्णुता के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। सहिष्णुता से होता है। ही साधक परीषहों को जीत सकता है। बन्दन से नीचगोत्र के बन्ध खण्डित हो जाते हैं। व्यावहारिक जीवन में भी सहिष्णता का होना जरूरी नरकों के बन्धन टूट जाते हैं। श्रेणिक राजा का प्रसंग इस है। उससे आप एक सफल पारिवारिक तथा सामाजिक संदर्भ में काफी विश्रुत है। जीवन जी सकते हैं। यदि बात-बात पर आप अपना आप भी अपने व्यवहार में वन्दन व्यवहार को प्रमुखता आपा खो देते हैं, तो आप अपनों द्वारा ही नकार दिए दीजिए। पर ध्यान रहे यह वन्दन चापलूसी के लिए न जाएंगे। हो। यह आपके हृदय की विनम्रता का सहज परिणाम सहिष्णु बनिए !..... अन्ततः सहिष्णुता ही कैवल्य हो। इससे आप न केवल एक संस्कारित और सुखी तक का आधार है। ... गृहपति बन जाएंगे। अपितु एक मान्य और सम्मान्य सामाजिक भी बन जाएंगे। ... वन्दन सैनिक-सा-साहस अहंकार में आकर नीच गोत्र का बंध न करलें, उच्च देश की रक्षा के लिए हमारे सैनिक ऐसे स्थानों पर गोत्र कर्म का ही वन्ध रहे, यह सुयोग उपलब्ध होता रहे अटल चट्टान बनकर खड़े हैं जहां हम एक क्षण भी नही तो हम कर्म की निर्जरा कर सकते हैं। इस संदर्भ में । रुक सकते हैं। कुछ ऐसे स्थान हैं, ऐसी चौकियां है जहां पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, व्यावहारिक जीवन, भयंकर शीत पडती है. हमेशा ही बर्फ गिरती रहती है पर ४८ प्रवचन-पीयूष-कण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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