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________________ वंदन-अभिनंदन ! युक्त हैं। गुरु के गुणों को उद्घाटित करने में शिष्य भला | २. साधु व्याख्यानी होना चाहिए ३. साधु तपस्वी होना समर्थ हो सकता है? मैं तो अल्पज्ञ ही हूँ। गुरु गुण अनंत । चाहिए और साधु सेवाभावी होना चाहिए। हैं। मैं चाहते हुए भी गुरु ऋण से उऋण नहीं हो सकता। __ मैंने प्रत्यक्षतः देखा है - मैं इनका शिष्य हूँ लेकिन गुरुदेव का हमारे जीवन पर महान उपकार है। माता आप कभी मेरी सेवा करने से भी पीछे नहीं हटते। पिता ने तो जन्म ही दिया है परन्तु गुरुदेव ने जीवन को रूग्णावस्था में मुझे आहार, पानी, दवाई आदि लाकर देते श्रेयस्कर बनने का मार्ग प्रदान किया है। जीवन जीने की हैं और मेरे वस्त्रों का भी प्रक्षालन कर देते हैं। आप कभी कला सिखाई है। मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करने वाले परमोपकारी भी छोटे या बडे सन्तों की सेवा से हिचकिचाते नहीं। गुरुदेव ही हैं। गुरु हमारी असद्प्रवृत्ति को सद्प्रवृत्ति में परिवर्तित करते हैं। ___ आज हम गुरुदेव का गुणगान करते हैं। किसलिए करते हैं? उनको प्रसन्न करने या रिझाने के लिए? नहीं! हमारा जीवन जो भौतिकता की चकाचौंध से दिग्भ्रान्त हम उनके जीवन की आन्तरिक विशेषताओं को अभिव्यक्ति है उसे दूर करने में गुरुदेव ही समर्थ हैं। देना चाहते हैं जिससे कि इनके जीवन का आदर्श जनता पूज्य गुरुदेव श्री साहित्यसेवी भी हैं। केवल कथा के समक्ष उद्घाटित हो सके तथा कुछ इनके जीवन से कहानी ही नहीं अपितु आपकी पुस्तकें तत्त्व सामग्री से जन-जन भी शिक्षा ग्रहण कर सके। महापुरुष हमेशा पूज्य हैं तथा गुणगान के योग्य हैं। गुरुदेव ने अपने जीवन में उन समस्त गुणों को समाहित जब भी कोई व्यक्ति किसी समस्या को लेकर गुरुदेव कर लिया है जो भगवान महावीर ने साधना पथ के लिए थी के चरणों में आता है। इनका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं आवश्यक बताए थे। जो दीपक लौ के सम्पर्क में आता हो तब भी समाज के लिए, धर्म के लिए सदैव कार्यरत है वह जगमगाहट से भर जाता है। उसका प्रकाश अंधेरे रहते हैं। गुरुदेव कहते हैं- “व्यक्ति कितनी आशाएँ में भटकते प्राणी के लिए मार्ग दर्शन का कार्य करता है। लेकर आता है। उनकी जिज्ञासाओं का समाधान अगर हम नहीं करें तो उनके आगमन का प्रयोजन ही क्या है?" गुरुदेव का जीवन भी ऐसा ही प्रकाशपुञ्ज है, जो कोई भी इनके सम्पर्क में आता है वह अवश्य ही प्रकाशमय वस्तुतः साधु का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। बन जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन समस्याओं से आपसे समाधान पाने हेतु श्रावक गण रात्रि को १०-११ ग्रसित है जिसका समाधान पूज्य गुरुदेव सत्यता लेकर कर बजे तक भी उपस्थित रहते हैं। आपको दिन भर तनिक देते हैं। भी विश्राम का समय नहीं मिलता है। आप सतत् कर्मशील रहते हैं। आप कभी गुरुदेव के पास आएँ आप उन्हें पूना श्रमण सम्मेलन में कितनी प्रकार की समस्याएँ खाली बैठे नहीं देखेंगे। इस उम्र और रुग्णावस्था में भी आई थीं। आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी म.सा. को चिन्ता थी कि कौन इस सम्मेलन के संचालन का भार आपमें कितनी कर्मठता है। सम्भालेगा? वह व्यक्ति ऐसा हो जो सभी छोटे-बड़े सन्तों आचार्य श्री आत्माराम जी म.कहा करते थे, साधु में | को साथ लेकर चल सके, सभी का मार्गदर्शन कर सके चार गुण होने चाहिए - १. साधु विद्वान होना चाहिए । सम्मेलन को कुशलता पूर्वक संचालित कर सके। आचार्य ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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