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________________ सुमन साहित्य : एक अवलोकन ४. आम्यन्तर तप जैसे ध्यान, स्वाध्याय तथा प्रवचन का आचरण प्रति दिन करते थे। ५. वे कठोर संयमी थे तथा धर्म-क्रिया में बहुत दृढ़ता रखते थे। वे अज्ञात कुल से गोचरी लेने का प्रयत्न करते थे। वे पूर्णतः साधु-मर्यादा के अनुकूल आहार उपलब्ध होने पर ही गोचरी ग्रहण करते थे। उनके जीवन में बहुत तेजस्विता एवं ओजस्विता थी। उन्होंने हजारों लोगों को व्यसन-मक्त किया तथा शाकाहारी बनाया। जैन तत्त्वज्ञान में वे निपुण थे तथा उनका प्रवचन इतना हृदयग्राही भाषा में होता था कि श्रोताओं कि सभी शंकाएं निर्मूल हो जाती थी। ऐसे महान् श्रमण की मार्मिक घटनाओं को बड़ी ही सरल भाषा में इस ग्रन्थ में अभिव्यक्त किया गया है। १२५ पृष्ठों की यह पुस्तक वि संवत २०२६ में प्रकाशित हुई। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह पुस्तक अतीव रोचक एव हृदयग्राही है। पंजाब श्रमणसंघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंहजी महाराज प्रभावी शब्द चित्रांकन "मंझली/मध्यम अवगाहना, सुडौल भरकम शरीर, यह ग्रन्थ भी एक ऐतिहासिक रचना है। इसका गौरवर्ण, विशालभाल, गम्भीर एवं मृदुस्वर, समचतुरस्र प्रथम संस्करण सन् १६७० में एवं द्वितीय संस्करण पाठकों संस्थान – पर्यंकासन अर्थात्, चौकड़ी आकृति वाले, भव्य की मांग पर पुनः सन् १६६४ में प्रकाशित हुआ। इसमें व्यक्तित्व से पूर्ण। स्वभाव से नम्र, शान्त, सरल, चतुर, पंजाब प्रान्त के गौरवशाली जैनाचार्य श्री अमरसिंहजी समाधिवान्, ध्यानयोगी, तप संयम के उत्कट आराधक, महाराज का जीवन चरित्र है तथा उनके व्यक्तित्व एवं स्व-दुख सहिष्णु, संतसेवी पुरुष, सिद्धांत में कर्मठ।" कृतित्त्व का मनोहारी वर्णन प्रस्तुत है। इसमें २१ परिच्छेदों के माध्यम से उनके बाल्यकाल, वैराग्य, श्रमण-दीक्षा, ग्रन्थ लेखन की कठिनाइयां आचार्यपद, त्याग और तपस्या, सेवाकार्य आदि का लगभग इस जीवनचरित को लिखने में बड़ा भारी प्रयास १८० पृष्ठों में वर्णन दिया गया है। ग्रन्थ की भाषा सरल, करना पड़ा क्योंकि इसकी रचना के समय आचार्यश्री को प्रवाहयुक्त व सरस है। प्रारम्भ में आचार्य प्रवर का शब्द- दिवंगत हुए ६० वर्ष व्यतीत हो गए थे तथा वे संत पुरुष चित्र के द्वारा मार्मिक वर्णन किया गया है। कुछ अंश भी दिवंगत हो गए थे जो उनके निकट सम्पर्क में आए दृष्टव्य है थे। आचार्य श्री आत्मारामजी ने इनका एक जीवन चरित्र ___“अमृतसर जैसी ऐतिहासिक नगरी के जौहरी कुल में लिखा था, उसी को इस ग्रन्थ का आधार बनाया गया है उत्पन्न हुआ यह बालक हीरा, मणि, रत्न आदि का परीक्षक पर अधिकांश सामग्री संतों, साध्वियों, श्रावकों, श्राविकाओं ही नहीं अपितु ज्ञान, दर्शन, चारित्र की रत्न-त्रयी का भी से प्रत्यक्ष वार्ता द्वारा भी एकत्रित की गई है। इस सम्बंध आराधक बन करके आत्म-स्वरूप का ज्ञाता, तप-संयम में अति महत्त्वपूर्ण सामग्री साध्वी श्री स्वर्णाजी से प्राप्त की ध्याता, श्रमण-शिरोमणि संघनायक आचार्य बनकर पंजाब थी, उन्होंने महा- श्री मेलोजी, श्री खूबांजी व श्री प्रान्त के संत एवं श्रावक समुदाय को धर्म की दृढ़ता प्रदान ज्ञानाजी से प्राप्त की थी। श्री स्वर्णाजी ने उन सब परंपरागत करेगा तथा समाज को गौरवान्वित करेगा - यह किसे पत्रों को सुरक्षित रखा जिसमें आचार्यश्रीजी के लिखित पता था?" | पंजाब श्रमणसंघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंहजी महाराज १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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