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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि श्रमण-श्रमणियों में भी अत्यन्त लोकप्रिय है। इसके एक- थी। मैं उस समय बैरिस्टर बनकर लौटा था लेकिन जब एक दोहे में आत्म-तत्त्व का ज्ञान एवं सिद्धि प्राप्त करने का भी मैं उनसे मिलता वे मुझे धर्म की गहन चर्चा में निमग्न गम्भीर भाव भरा हुआ है। महाकवि बिहारी प्रणीत “सतसई" कर देते। मैं अनेक धर्मों के महापुरुषों के संपर्क में आया के बारे में जो बात कही गई, वह इस पर भी खरी उतरती । लेकिन मैं स्पष्ट कह सकता हूं कि मैं किसी से भी उतना प्रभावित नहीं हुआ जितना रायचन्द्रभाई से हुआ हूं। "सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। उनके शब्द सीधे मेरे हृदय को छूते थे। वे मेरे मददगार देखन में छोटे लगे, घाव करे गम्भीर।।" और मार्गदर्शक बने।" यह ग्रन्थ भी आकार में अत्यन्त संक्षिप्त है पर आत्म- ग्रन्थ रचना का हेतु - सिद्धि का मार्ग बतलाने की विलक्षण क्षमता रखता है। श्रीमद् रायचन्द्रभाई मेहता के ग्रन्थ पर श्रीसुमनमुनिजी इस छोटे से ग्रन्थ पर श्रीसुमनमुनिजी म. ने एक सहस्र से महाराज ने “शुक्ल-प्रवचन" नामक जो वृहद् भाष्य लिखा भी अधिक पृष्ठों में वृहद भाष्य लिखा है जो “शुक्ल उसके पीछे एक विशेष कारण था - वर्तमान समाज में प्रवचन" के नाम से चार भागों में प्रकाशित हुआ है। व्याप्त एक भ्रान्ति व अज्ञान का निवारण। जिस महापुरुष पूज्य श्रीसुमनमुनिजी की कीर्ति-गाथा को गौरव पर पहुंचाने ने वीतराग धर्म का सुन्दर विवेचन किया, उसी के उपासक वाला यह महान् ग्रन्थ है। उनकी आज्ञाओं के विपरीत आचरण करने लगे। श्रीरायचन्द्र मूल लेखक का परिचय - के उपासक उन्हें एक स्वतंत्र धर्मगुरु या धर्म के प्रतिष्ठापक के रूप में मानने लगे। श्रीमद् ने सभी धर्म क्रियाओं का श्रीमद् रायचन्द्रभाई मेहता पेशे से जवाहर का व्यवसाय समर्थन किया बशर्ते कि वे शास्त्रानुकूल हो व विवेक से करते थे पर जैन तत्त्व-ज्ञान के श्रेष्ठ ज्ञाता एवं प्रचारक की जाये तथा आत्म-ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हो। थे। वे एक आशु कवि भी थे। भारत के सर्वश्रेष्ठ महापुरुष महात्मा गाँधी ने उनसे अहिंसा-धर्म का सम्यक् उन्होंने सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय एवं तप की ज्ञान प्राप्त किया था तथा वे उनसे बहुत प्रभावित थे। उपयोगिता को स्वीकार किया था लेकिन उन्हीं के भक्तजनों महात्मा गाँधी ने स्वयं अपनी “आत्म-कथा” में लिखा है - को आज ये मान्य नहीं हैं। श्रीमद् ने स्वतंत्र रूप से किसी "श्रीरायचन्द्रभाई से जब मेरा संपर्क हुआ तब वे मात्र २५ पंथ या गच्छ की स्थापना नहीं की किन्तु आज उनके वर्ष के थे लेकिन पहली बार मिलने पर ही मुझे विश्वास अनुयायियों ने उनका अलग गच्छ बना दिया है और उसे हो गया कि वे ज्ञान के धनी और उच्च चरित्रशील व्यक्ति __ तीर्थंकरों द्वारा प्रणीत मत से अलग प्रचारित कर रहे हैं। हैं। वे एक श्रेष्ठ कवि व शतावधानी थे और मैंने उनकी श्रीमद् के सारे उपदेश वीतराग वाणी पर आधारित थे अद्भुत स्मरण शक्ति के अनेक चमत्कार देखे, लेकिन और उन्होंने सबको जिनसूत्रों को पढ़ने की प्रेरणा दी। उनके काफी संपर्क में आने के बाद मुझे ज्ञात हुआ कि उनका शास्त्रों का ज्ञान भी बहुत विपुल एवं विलक्षण था पूज्य श्रीसुमनमुनिजी महाराज ने श्रीमद् के सभी और उनमें आत्म-ज्ञान को प्राप्त करने की अदभत लगन ग्रन्थों को पढा, सन् १६७४ से १६६१ तक (१७ वर्षों १. आत्म-कथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग - महात्मा गाँधी, पृष्ठ ७४, ७५ ६ शुक्ल प्रवचन भाग : १से ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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