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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि संस्कृति की धरोहर का पुनर्मूल्यांकन है। पूज्य महाराज | में भी आपकी विशिष्ट शैली अपनी अलग ही पहचान श्री के दीक्षा जयन्ति के शुभ अवसर पर उनका हार्दिक | रखती है। आपके इसी बहुआयामी व्यक्तित्व तथा कृतित्व अभिनन्दन करते हुए हार्दिक गौरव का अनुभव हो रहा | से प्रभावित होकर श्रमणसंघ ने आपको श्रमणसंघीय सलाहकार, मंत्री के पद पर सुशोभित किया है। समय। युवाप्रज्ञ डॉ. सुव्रत मुनि समय पर समाज द्वारा आपको निर्भीक वक्ता, इतिहास एम.ए.पी-एच.डी केसरी, प्रवचन दिवाकर, श्रमणसंघीय सलाहकार, उपप्रर्वतक, मंत्री आदि उपाधियों से अलंकृत किया गया है जो कि आपकी बहुमुखी प्रतिभा के जीवन्त द्योतक है। बहुमुखी व्यक्तित्व __आपके दीक्षित जीवन के पचास वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। इस अवसर पर 'दीक्षा स्वर्ण जयंति ग्रंथ' के जीवन की क्षणभंगुरता तथा भौतिक सुखों की निस्सारता प्रकाशन का कार्य वास्तव में आपकी प्रतिभा का सही को भलीभाँति समझकर अनेक भव्य जीवों ने समय समय सम्मान है। आप दीर्घायु होकर संघ-समाज का कुशलमार्गपर संसार का परित्याग करके संयम पथ को अंगीकार दर्शन करते रहें तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप की किया है। संयम मार्ग के पथिक बनकर स्व आत्मकल्याण अभिवृद्धि करते रहें। इस अवसर पर यही हार्दिक के साथ साथ जन कल्याण का कार्य करनेवाले संत जन ही पूजनीय, आदरणीय तथा अनुकरणीय होते हैं। जैन शुभकामना है। श्रमण परम्परा में अनेक महान् संत हुए हैं जिन्होंने अपने सरल निर्भीक लेखक आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, बहुमुखी व्यक्तित्व तथा कृतित्व के द्वारा अपनी एक प्रवचन प्रभाकर श्रमणसंघीय सलाहकार आप बड़े-गुणी है। विशिष्ट पहचान बनाकर समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त | आया अवसर शुभ दीक्षा स्वर्ण जयंति का 'प्रिय शिष्य' किया है। मुनि सुमन रहो रत संयम-साहित्य-साधना में शुभ भाव यही है। श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनकुमारजी 0 उदयमुनि (प्रियशिष्य) जैनसिद्धांताचार्य' म.सा. भी एक ऐसे ही संतमना है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व रतलाम (म.प्र.) तथा कृतित्व द्वारा समाज को प्रेरित किया है उसे मार्गदर्शन प्रदान किया है। शांतिदूत ___ मात्र पन्द्रह वर्ष की अस्पायु में २० अक्टू. १६५० को पं. श्री महेन्द्रकुमारजी म.सा. के श्रीचरणों में दीक्षित श्रमणसंघीय मंत्री प्रवर, स्नेहमूर्ति, इतिहासकार पूज्यप्रवर होकर आपने सद्गुरु के सान्निध्य में रहकर जो संयम तथा श्री सुमनमुनिजी म.सा. के प्रथम दर्शन धूलिया (महाराष्ट्र) साहित्य की साधना की है, वह आज मुमुक्षु मानवों के में हुए थे। उनके बाह्य व्यक्तित्व एवं आभ्यंतर वैचारिक लिए प्रेरक व अनुकरणीय बन गई है। आपकी सरलता व्यक्तित्व से मैं बहुत प्रभावित हुआ। फिर पूना (महा.) में निर्भीकता, स्पष्टवादिता, सिद्धांतों की दृढ़ता तथा समन्वय आयोजित श्रमणसंघीय संत-सति मंडल के सम्मेलन के वादी विचारों की प्रमुखता ने आपको एक बहुमुखी व्यक्तित्व पुनीत अवसर पर भी दर्शन का लाभ हुआ। वहाँ पर का धनी बना दिया है। लेखन, सम्पादन तथा प्रवचन क्षेत्र | आपने मुझे बहुत स्नेह दिया। दैनिक सम्मेलन की कार्यवाही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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