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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
भरकर, चन्दनहार एवं शाल्यार्पण करके अभिनन्दन किया गया।
Prakrit) ने उपस्थित रहकर समारोह की शोभा बढाई। श्रीमान उदयराज जी पारसमल जी दक के कर कमलों द्वारा विद्यापीठ का बेनर खोलकर उद्घाटन संपन्न हुआ। जिन्होंने विद्यापीठ के लिए एक लाख रुपाये भेंट देने की घोषणा की। एवं आगामी शनिवार-रविवार से कक्षाओं का प्रारम्भोत्सव की घोषणा की गई।
चातुर्मासिक मंगल विहारः
दिनाक २६-११-१६६६ का मुनिवृद का चातुमासिक मंगलविहार प्रात; ६ बजे स्थानक भवन से हुआ और जलुस के साथ अग्रहार में श्री झेड़ सतीश कुमार जी मुणोत के निवास पर पधारे।
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उद्घाटन समारोह भगवान महावीर प्राकृत भाषा जैन विद्यापीठ, मैसूर
दिनांक २६-१-१६६७ रविवार भारत के गणतन्त्र दिवस पर प्रातः १०.०० बजे श्री स्थानकवासी जैन संघ मैसूर के नवनिर्माणाधीन प्रवचन भवन में “भगवान महावीर प्राकृत भाषा जैन विद्यापीठ, मैसूर" का उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ। इस समारोह में विद्यापीठ के प्रेरक श्रमण संघीय सलाहकार मन्त्री श्री सुमन कुमार जी महाराज का शुभ सान्निध्य रहा। बहुश्रुत पण्डित मुनि श्री जसराज जी स्वामी, सेवाभावी श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा., सेवाभावी श्री सुमन्तभद्र मुनिजी म.सा., महासती पूज्य डॉ. ज्ञान प्रभाजी म.सा. श्री सत्यप्रभा जी म.सा. आदि ठाणा-१२, श्री श्वेताम्बर मू. संघ से महासती जी ठाणा-४ की पावन उपस्थिति रही।
समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. एम.डी. वसंतराजैया जी (Prof. & Retd. H.O.D. Dept. of Jainology & Prakrit, University of Mysore) की शोभनीय उपस्थिति रही। इस समारोह में विशेष अतिथिगण डॉ. पी.डी. बडीगेर जी, श्री शुभचन्द्रा जी जैन (Prof & Ex. H.O.D. Dept. of Jainology & Prakrit) डॉ. एन सुरेशकुमार जी जैन (Lecturer Dept. of Jainology &
वर्तमान गतिविधियां:
विद्यापीठ की स्थापना ने समाज में धार्मिक अध्ययन एवं प्राकृत भाषा के पठन में एक नया अध्ययन प्रारम्भ किया है। शहर के शिक्षित युवा वर्ग उत्साह के साथ विद्यार्जन के लिए समय निकालकर दिनांक १-२-१९६७ से प्रारम्भ हुई प्रति शनिवार रविवार कक्षाओं में निरन्तर भाग ले रहे हैं। मौजुदा २५ विद्यार्थियों को श्रीमान डॉ. पी.बी. बडीगरे जी, डॉ. एन. सुरेशकुमार जी जैन एवं श्रीमती ज्वालानाम्मा सुरेश जैन अपनी-अपनी विद्वत्ता से लाभान्वित कर रहे हैं।
___ कक्षाओं के प्रारम्भ में प्राकृत भाषा का व्याकरण हिन्दी के माध्यम से, दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं को भावार्थ एवं शब्दार्थ के माध्यम से सिखाया जा रहा है।
इस अध्ययन से प्राकृत भाषा ज्ञान के साथ-साथ जैन धर्म के गहरे अध्ययन मनन पर काफी सहयोग रहेगा एवं भविष्य में स्वाध्याय की प्रवृति में बढोतरी होगी। स्वाध्यायी बन्धुओं को शास्त्र अध्ययन शास्त्रवांचन एवं धर्म प्रवचन देने मेंआगे बढ़ाने के लिए यह शिक्षण कार्य अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। ___ इस विद्यापीठ को आगे उपर्युक्त विश्वविद्यालय से संबंद्ध कर पाठयक्रम को अपनाते हुए एक सुनिश्चित दिशा में ले जाने का प्रयास रहेगा। समय-समय पर समस्त
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