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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व और वज्रपात की सूचना मिली कि श्रमण संघ के अधिनायक आचार्य श्री आनन्दऋषि जी म. का स्वर्गवास हो गया। (२८ मार्च १६६२ को) २ अप्रैल को उनकी गुणानुवाद सभा आयोजित हुई। युवाचार्य श्री ने आचार्य भगवन्त के आत्मनिष्ठ संयमनिष्ठ जीवन के गुणों पर प्रकाश डालते हुए कहा – “आचार्य श्री जी यथानाम तथागुण सम्पन्न थे। जिन्होंने दीर्घ काल तक श्रमण संघ का नेतृत्व किया। संघ में आई एक विषम परिस्थिति का सामना किया। आप समाज के शिवशंकर थे। आपने विष पान करके समाज को अमृत प्रदान किया। आपने संघ को एक ऐसी व्यवस्था दी कि जिससे संघ उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हुआ। सरलता. क्षमता. सहिष्णुता, करूणा और अहिंसा आपमें सर्वदा-सर्वथा समाहित थी। युवाचार्य श्री ने आचार्य देव के साथ बीते क्षणों के संस्मरण भी सुनाए और आचार्य देव को श्रद्धार्पित करते हुए कहा कि हमें उनके आदर्शों को जीवन में अपनाकर श्रमण संघ को सुदृढ़ करना है।" श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनि जी म.सा. ने पद्य एवं गद्य में आचार्य श्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा -- “आचार्यों को भावपूर्ण वन्दन करने से अनेक भवों के पापों का नाश होता है। आप श्री ने आचार्य देव के जन्म से लेकर उनके गुणों का विश्लेषण करते हुए सारगर्भित शैली में अपने श्रद्धा समन अर्पित किये। श्री शैलेष मुनि जी म. एवं श्री शिरीष मुनि जी ने भी आचार्य देव को श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। आचार्य देव का स्वर्गवास वस्तुतः जैन समाज के लिए भीषण क्षति थी। जो सन्निकट भविष्य में अपूरणीय थी। वहाँ से विहार कर श्रद्धेय मुनि श्री युवाचार्य श्री के संग के.जी.एफ. पधारे एवं १५-४-६२ को उमंग और उल्लास के साथ महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया। अनेक निकटवर्ती संघों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सभी का उत्साह दृष्टव्य था। अक्षय तृतीया भी यहीं सम्पन्न हुई। वानियमबाड़ी वर्षावास स्वीकृति ____ अक्षय तृतीया के पश्चात् के.जी.एफ. से विहार करते हुए आप श्री अँडरसनपेठ पधारे। वहाँ स्व. आचार्य श्री कांशीराम जी म. की पुन्य तिथि मनाई। इस अवसर पर वानियमबाड़ी का श्री संघ चातुर्मास की विनती लेकर उपस्थित हुआ। गुरुदेव श्री ने संघ को आगामी वर्षावास की स्वीकृति प्रदान की। अण्डरसन पेठ से विहार कर कुप्पम वरगुर होते हुए तिरपातूर पहुँचे। मार्ग में भयंकर वर्षा और धूप का सामना करना पड़ा। वरगुर में कृष्णगिरि के भाई विनति के लिए आए। किन्तु गुरुदेव तिरपातूर पहुँचे। तिरपातूर में जैन भवन है, जो कि पूरे जैन समाज का है। मदनलाल जी वाठियाँ के मकान में ठहरे। तिरपातूर में मन्दिर मार्गी- ., स्थानकवासी दोनों समाजों का एक ही संघ है। सभी मिलकर साधु-साध्वी की सेवा एवं धर्म ध्यान करते हैं। एक जैन मन्दिर है जो नया बना है। यहाँ गुरुदेव श्री ने स्थानक भवन की प्रेरणा दी। वहाँ से चंगम जहाँ ४-५ घर हैं जिसमें श्री जम्बूकमार जी लालवानी बहुत सेवा भावी है। यहाँ दो दिन ठहरे। यहाँ से तिरुवन्नामल्लै पहुँचे। यहाँ विशाल जैन भवन एवं मन्दिर है। तीनों संघ हैं। स्थानकवासी समाज के २०-२५ घर हैं। जिसमें श्री मोहनलालजी पारस मल जी वोरा, शान्तिलाल जी पटवा आदि अग्रणी हैं। यहाँ गुरुदेव लगभग एक सप्ताह ठहरे। धर्म देशना का क्रम चालू रहा। यहाँ से पोलूर गए वहाँ ७-८ घर हैं अच्छा धर्म प्रेम है। वहाँ से आरणी पहुंचे। वहाँ लगभग २० घर हैं जैन ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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