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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री चम्पालाल जी डूंगरवाल यशवंत पुर की धरा पर हुआ यहाँ आप श्री की पावन ने की तथा प्रमुख वक्ता थे - श्री ज्ञानराज जी मेहता निश्रा में कर्नाटक केशरी श्री गणेशी लाल जी म. की बैंगलोर । मुख्य अतिथि थे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण २६वीं पुण्यतिथि तप त्याग के साथ मनाई गई। सहज अधिकारी डॉ. गंगाधर। सुलभ पुण्योत्सव का अवसर प्राप्त कर यशवंतपुरम् का इस शभ प्रसंग पर गरीबों को कम्बल दान दिए गए संघ धन्य हो गया। गुरुदेव श्री सहित अनेक वक्ताओं ने एवं निकट भविष्य में निःशुल्क नेत्र परीक्षण एवं शल्य कर्नाटक केशरी को भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित की पुनः चिकित्सा शिविर के आयोजन की भी घोषणा की श्री विहार यात्रा सानंद सम्पन्न करते हुए आप श्री मार्च के अजयराज जुगराज जी सिंघवी ने की। इसी चातुर्मास में मध्य बैंगलौर पधारे। “आत्मसिद्धिशास्त्र" पर टाईप हुए व्याख्यानों का मुनि श्री फलों की नगरी में सलाहकार मंत्री जी म. के पावन ने सम्पादन शुभारंभ किया। उसके प्रकाशन के लिए श्री पदार्पण पर धर्म रसिक जनता को अपार हर्ष हुआ। आप हुकुमचन्द जी पुगलिया ने भावना प्रकट की। श्री के ओजस्वी प्रेरक एवं निडर समसामयिक प्रवचन ____ दि. २ अक्टूबर १६६० को उपर्युक्त चिकित्सा सुनकर श्रोतागण मुग्ध हो जाते थे। शिविर सानंद सम्पन्न हुआ। दिनांक २६-१-६१ की पुनीत वेला भी राजाजी तप-त्याग धार्मिक उल्लास के साथ दोड्डाबालापुर का नगर वासियों के लिए कि जिस दिन आप श्री के चरणों वर्षावास सानंद सम्पन्नता की ओर अग्रसर होने लगा। ने उस धरती को पावन किया इसी शुभ दिन राजाजी नगर संघ के द्वारा भव्य स्थानक-निर्माण की प्रक्रिया का भावपूर्ण विदाई भी शुभारंभ हुआ। इस प्रसंग पर आप श्री के प्रवचन का भी लोगों को लाभ मिला। चातुर्मास सुसम्पन्न होने के पश्चात् श्रावक श्राविकाओं ने भावपूर्ण विदाई दी परम श्रद्धेय मुनिवर को । मुनिवर राजाजी नगर धर्मोद्योत करके आप श्री शिवाजी श्री की पुनः धर्मयात्रा प्रारंभ हुई। दि. २६ नवम्बर नगर के गणेश बाग में पधारे दिनांक २८-२-६१ को १६६० सोमवार को श्रद्धेय आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी आप श्री का फाल्गुनी चातुर्मास वहीं हुआ। प्रवचनों की म. की ७५वीं दीक्षाजयंति सोत्साह मनाई गई। स्थान- धूम रही। के.जी.एफ. के चातुर्मास की स्वीकृति दी। यहलंका उपनगर, अध्यक्षता श्री फूलचन्द जी लूणिया। तदनन्तर बैंगलोर के उपनगरों में विचरण करने लगे। २ जनवरी १६६१ को भारती नगर में स्थित आचार्य अलसूर श्री संघ की विनती स्वीकार कर चैत्री नवपद श्री अमोलक ऋषि जी म. जैन स्थानक का उद्घाटन हुआ ___ओली एवं महावीर जयन्ति हेतु श्रद्धेय मुनि श्री ने स्वीकृति आप श्री की निश्रा में। एवं दान दाताओं का अभिनन्दन प्रदान की। स्थानीय एवं बाहर के बाजारों की धर्म प्रिय किया गया। इस प्रसंग पर गौंडल सम्प्रदाय की महासती जनता ने श्रद्धा और उत्साह के साथ आयविल तप की श्री भारती श्री जी म. भी अपनी शिष्याओं के साथ वहाँ आराधना की। श्रीपाल चरित्र का वाचन हुआ। दि. २७पधारी। ३-६१ को भगवान् महावीर का पुनीत जन्म कल्याणक १५ जनवरी १६६१ को आप श्री का शुभ पदार्पण महोत्सव मनाया गया। अलसूर के प्रमुख बाजारों में प्रभात |२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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