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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व जी म. सा. के जीवन पर विशद प्रकाश डालते हुए उनकी आगमिक सेवाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कृतज्ञता के भाव प्रदर्शित किए। अन्य सभी व्यक्तियों ने भी अपने-अपने श्रद्धा भाव अर्पित किये। प्रस्थित हैदराबाद से बोलारम तथा हैदराबाद के दो यशस्वी चातुर्मास सम्पन्न करके श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनमुनि जी म. ने १८ फरवरी १६६० को पावन बेला में दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। आप श्री को विदाई देने हेतु डबीरपुरा स्थित जैन स्थानक में बड़ी तादाद में श्रावकश्राविकाएँ उपस्थित थे। स्थानीय श्रावकों ने मुनि श्री से अनुरोध किया कि दक्षिण यात्रा से लौटते समय पुनः अपने सत्संग एवं प्रवचनों से इस नगर को उपकृत करें। मुनिवर ने भी नगर द्वय के श्रावकों के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए हार्दिक आभार प्रकट किया। इन दो वर्षों में मुनि श्री सुमनकुमार जी म. ने धार्मिक क्रिया कलापों के अतिरिक्त दो सारस्वत उपक्रमों का भी श्री गणेश किया। एक तो उस्मानिया विश्वविद्यालय में । 'जैन-पीठ' की स्थापना की प्रेरणा तथा दूसरे शास्त्रोद्धारक श्री अमोलक ऋषि जी म. की दीक्षा शताब्दी महोत्सव का शुभारम्भ। ४ का चातुर्मास भी रायचूर ही घोषित हुआ। ७ मई १६६० को यादगिर में श्रीमान् सेठ बाहदरचन्द जी धोका द्वारा तथा श्री एस.एस. जैन संघ, यादगिर के सहयोग से यह दीक्षा सम्पन्न हुई थी। इस अवसर पर चरितनायकजी म., युवाचार्य श्री तथा प्रवर्तक श्री रूपचन्दजी 'रजत', सर्व ठाणा विराजमान थे। दोड्डबालापुर चातुर्मास __सन् १६६० का वर्षावास सुनिश्चित हुआ दौडबालापुर में। दिनांक १ जुलाई १६६० रविवार को ११ बजे परम श्रद्धेय मुनिवर ने चातुर्मासार्थ दौड्डबलापुर में प्रवेश किया तो अपार जनसमूह हर्ष एवं उल्लास से आनंदित हो उठा। मंगल प्रवेश के पश्चात् प्रतिदिन धार्मिक कार्यक्रम सुसम्पन्न होने लगे। २३ जुलाई ६० को आचार्य श्री आनन्दऋषि जी म. का ६१ वाँ जन्म दिवस तप-त्याग के साथ मनाया गया। आचार्य श्री के जयन्ति महोत्सव पर विधायक श्री आर.एल. जालप्पा. नगरपालिका अध्यक्ष आदि ने भी भाग लिया। अनेक संघ आचार्य देव को भाव श्रद्धा से युक्त पुष्प अर्पित करने यहाँ पहुँचे। श्रद्धेय मुनि श्री ने अपनी मधुर शैली में आचार्य श्री के जीवन का दिग्दर्शन कराया एवं आचार्य श्री के संस्मरण सुनाये। अनेक वक्ताओं ने भी आचार्य श्री के गुणगान गाये एवं श्रद्धा भाव अर्पित किए। इससे पूर्व प्रभात फेरी निकली, स्थानक में “णमोआयरियाणं" का सवा लाख जाप संपन्न हुआ। आयविल व एकासने भी इस अवसर पर बड़ी संख्या में किए गए। तदनन्तर पर्युषण पर्व की सानन्द आराधना की गई। २ सितम्बर १६६० को आचार्य श्री जयमल जी म., आचार्य श्री आत्माराम जी म. प्रवर्तक पं. श्री शुक्लचन्द जी म. का जन्म जयन्ति महोत्सव संघ के तत्वाधान में आयोजित हुआ। रायचूर की ओर विदाई समारोह के पश्चात् परम श्रद्धेय मुनिवर ने रायचूर की ओर विहार किया। रायचूर श्री संघ में युवाचार्य डॉ. श्री शिवमुनिजी म. तथा पूज्य सुमन मुनि जी ने होली चातुर्मास एवं महावीर महोत्सव मनाया तथा अशोक कोठारी (शीरीष मुनि) की दीक्षा का निर्णय भी यहीं पर हुआ। दीक्षा आज्ञा की उलझन, दीक्षादान कहाँ हो आदि का समाधान मुनि श्री की गहरी सूझ का परिणाम था। श्री संघ में अपार हर्ष रहा। युवाचार्य डॉ. शिवमुनिजी ठाणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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