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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि में हुआ। बम्बई घाटकोपर में आपने आचार्य जवाहरलालजी म. सा. के साथ “वीर संघ योजना" अखिल भारतीय स्थानकवासी कॉन्फ्रेन्स को दी। वि.सं. २००२ अम्बाला शहर में आपका देहावसान हुआ। आपकी अन्त्येष्टि क्रिया में पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी विदाई दी । *** इस प्रसंग पर अनेक संघों ने उक्त मुनिवरों एवं साध्वी वृन्द के लिए आगामी चातुर्मास ( वर्षावास) हेतु विनति प्रस्तुत की । संघों के पुरजोर आग्रह के कारण सलाहकार मंत्री मुनिजी ने डबीरपुरा - हैदराबाद क्षेत्र में आगामी वर्षावास के भाव व्यक्त किये। तदनंतर श्री जोधराज जी, भँवरलालजी, खींवसरा फीलखाना ने दिनांक २५-३-८६ से परम श्रद्धेय एवं युवाचार्यश्री की पावन सन्निधि में नमस्कार मंत्र का अखण्ड जा प्रारंभ किया गया, वहीं दिवसीय प्रवचन भी हुए । इसी प्रकार अन्य अन्य स्थलों, बाजारों में प्रवचन होते रहे और तदनन्तर सलाहकार मंत्री श्री सुमनमुनि जी म. के सान्निध्य में पंजाब केशरी जैनाचार्य पूज्य श्री काशीराम जी महाराज की ४४ 'पुण्य तिथि का समायोजन दिनांक २८ मई ८६ जेठ कृष्णा ८ संवत् २०४६ को हुआ। इस अवसर पर सर्व प्रथम मंगलाचरण सम्पन्न हुआ। तत्पश्चात् मुनि श्री सुमन्तभद्र जी म. ने अपने प्रभावशाली वक्तव्य में आचार्य श्री काशीराम जी के प्रति श्रद्धार्पित की। इस प्रसंग पर अनेक वक्ताओं ने आचार्य श्री काशीराम म. को श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमनमुनि जी म. ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में प्रातःस्मरणीय आचार्य श्री गहरी सूझ बूझ दूर दर्शिता, संगठन तथा संघ की एकता के लिए किए गए प्रयत्नों का अनुकरणीय उदाहरण देते हुए बताया कि आचार्य श्री जवाहरलाल जी म.सा. के साथ घाटकोपर ७८ Jain Education International (बम्बई) में ५०-५५ वर्ष पूर्व “वीर संघ योजना' समाज को अर्पित की थी। इस योजना के प्रारूप पर ही पूना सम्मेलन में प्रचार तंत्र को सशक्त बनाने के लिए साधु एवं श्रावक के मध्य का “मध्यम मार्ग" निर्धारित करने का प्रस्ताव रखा गया। जिसे सफल बनाने के लिए सभी से सहयोग करने की अपील की गई । कार्यक्रम का संचालन स्वयं मंत्री जी म. के ही कुशल निर्देशन में हुआ। अंत में श्री उत्तम चन्द जी लूणावत ने सभी को हार्दिक धन्यवाद प्रदान किया । इस प्रकार अपनी परम्परा के एक महान आचार्य श्री को भाव अर्पित करने के पश्चात् मुनि श्री ने अपना विचरण महानगर में प्रारंभ रखा। आपके प्रवचनों के गम्भीर विषय होते थे तथा तत्त्वों की चर्चा निहित होती थी । “सिमरथमलजी आलमचन्द जी एण्ड सन्स ने चरित नायक जी के प्रति एक हिन्दी पत्र में विज्ञप्ति प्रेषित करवाई - जिसमें इस प्रकार का उल्लेख है । - - मंत्री मुनि जी म.... जैन दर्शन एवं तत्त्व ज्ञान कर्म वाद, आत्मा, गुणस्थान, मोक्ष, स्याद्वाद, नय, निक्षेप, आदि पर गवेषणा प्रधान चिन्तन एवं विश्लेषण के अधिकारिक वक्ता हैं । समधुर वक्तव्य के धनी विचार चेतना के अग्रणी द्रष्टा प्रबुद्ध मनीषी, प्रज्ञा पुरुष चिन्मय ज्योति दर्शन व अथाह ज्ञान के विशाल मानसरोवर जिनके मधुर प्रवचन में पवित्र जिनवाणी निसृत होती है एवं दर्शन एवं महाकाव्य उद्धृत होते हैं। ज्ञान दर्शन चारित्र्य की अदृष्ट त्रिवेणी सतत् वहती रहती है । आप श्री के दिव्य आध्यात्मिक एवं कठोर साधना के ओजस का प्रभाव व निर्भीक वाणी श्रोताओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन पथ अपनाने के लिए प्रेरित करती है । " For Private & Personal Use Only *** www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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