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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व फरमाया कि – “भविष्य में आने वाले सभी साधु साध्वी वर्ग की बोलारम निवासी इसी प्रकार सेवा भक्ति करते रहें तथा धर्म में संलग्न रहें। यहाँ के जैनियों में जो आपसी सद्भाव, सेवाभाव एवं प्रेम भाव है वह प्रशंसनीय है। अधिक क्या कहूँ।” "खूब की सैरे चमन, फूल चुने और शाद रहे। लो बागवां हम तो चलते हैं, यह गुलशन तेरा आबाद रहे।।" समारोह के पश्चात् श्री मांगीलाल जी सुराणा की ओर से स्वधर्मी वात्सल्य था; जिसका लाभ उपस्थित जनों में लिया। दिनांक २३-११-८८ को गुरुदेव श्री को धर्म स्नेह से आप्लावित हृदय से भावपूर्ण अश्रुपूरित विदाई दी बोलाराम श्री संघ ने। गुरुदेव श्री जी २४-११-८८ को वहाँ से प्रस्थित हुए अपनी अगली मंज़िलें की ओर। चरैवेति... चरैवेती...चरैवेति.... चातुर्मासिक एक और उपलब्धि यह रही है कि "एस.एस. ओसवाल जैन सेवा समिति” की स्थापना/समय रक्षाबन्धन श्रावण सुदि १५। अनुप्रेरक थे - युवाचार्य डॉ. श्री शिवमुनिजी म. एवं श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनिजी म.। इन दोनों की प्रेरणा रही और इसका कार्यालय सिकन्दराबाद में स्थापित किया गया। उद्देश्य थे - जैन समाज के असहाय एवं कम आय वाले सज्जनों को ससम्मान सहायता/अध्ययन, विवाह, बीमारी, आकस्मिक संकट में सहायता प्रदान करेगी। सेवा क्षेत्रसिकन्द्राबाद, हैदराबाद, बोलाराम लगभग ३० किलोमीटर तक क्षेत्र। सप्रेरणा से (वह भूखंड जो गन्दगी तथा बदबू युक्त था) उसे अच्छी हालत में तबदील करा दिया। गुरुदेव श्री की यहाँ स्थिरता रही। अमृत महोत्सव ___ दिनांक १८-१२-६८ रविवार वि.स. २०४५ मिगसर सुदि ६ को महामहिम परम पूज्य आचार्य देव श्री आनन्द ऋषि जी म. का ७४ वाँ दीक्षा वर्ष अमृतमहोत्सव समापन एवं ७५ वाँ वर्ष शुभारंभ के मंगल आयोजन को सोत्साह मनाया -- श्री श्वे. जैन संघ, लाल बाजार सिकन्द्राबाद ने। स्थल था - आर्य वैश्य संघम्, लाल बाजार । ४००५०० भाई बहिनों ने इस आयोजन में भाग लिया। अनेक वक्ताओं ने आचार्य देव को श्रद्धार्पित की। हैदराबाद श्री संघ की ओर से श्री बन्सीलाल जी धारीवाल ने मंत्री मुनिश्री जी को आगामी चातुर्मास के लिए साग्रह विनति की।। इस प्रसंग पर आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी म. के जीवन को सन्दर्भित करते हुए श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमनमुनी जी म. ने लयबद्ध गाया – “हम तो उन्हीं सन्तों के हैं दास".... जिन्होंने मन मार लिया। तदनन्तर कहा – “सादड़ी मारवाड़ में महामुनि सम्मेलन के अवसर पर प्रथम बार उनके दर्शन एवं उनसे साक्षात्कार हुआ। उस समय आचार्यश्री जी जैसे थे मुझे पूना साधु सम्मेलन में भी वैसे ही दृष्टिगोचर हुए। यह ठीक है कि देखने वालों की अपनी दृष्टि होती है। तथापि महापुरुष के जीवन के अंकन में परिवर्तन की बात कहना उचित नहीं है। 'बदलाव, तबदीली, परिवर्तन यह सब ‘अज्ञ' पुरुषों के लिए होता है। 'सुज्ञ' पुरुषों के लिए नहीं। उत्थान/विकास का प्रगटीकरण शब्दों द्वारा ही “आत्मा से महात्मा"-“महात्मा से परमात्मा" की अवस्था को जैनधर्म दर्शन ने अभिव्यक्त किया है। इसलिए मैंने उनमें विकास देखा पर कभी परिवर्तन नहीं।" वहाँ से लाल बाजार पधारे। वहाँ २०x४० का क्षेत्र भूखण्ड यूं ही स्थानक के पीछे था, महाराज श्री की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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